हरएक स्याह रात के बाद ,नयी सुबह आती है।
तलाश है ज़िसकी मुझे वो मौसमे बहार आती है ।।
निहित स्वार्थ से ऊपर उठा यत्किंचित कभी कोई,
तो धरती पर जिंदगी खुद ब खुद मुस्कराती है।
समष्टि चेतना को देकर नाम रूहानी इबादत जैसा ,
शुभ संवेदनाओं की बगिया महकने लग जाती है ।।
तान सुरीली हो और कदमताल सधे हों जिंदगी के ,
बज उठेंगे वाद्यवृन्द व्योम में भोर खिलखिलाती है !!
हर एक स्याह रात के बाद,नयी सुबह आती है !,,
तलाश है ज़िसकी मुझे वो मौसमे बहार आती है ।।
निहित स्वार्थ से ऊपर उठा यत्किंचित कभी कोई,
तो धरती पर जिंदगी खुद ब खुद मुस्कराती है।
समष्टि चेतना को देकर नाम रूहानी इबादत जैसा ,
शुभ संवेदनाओं की बगिया महकने लग जाती है ।।
तान सुरीली हो और कदमताल सधे हों जिंदगी के ,
बज उठेंगे वाद्यवृन्द व्योम में भोर खिलखिलाती है !!
हर एक स्याह रात के बाद,नयी सुबह आती है !,,
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