कौमी एकता के प्रवल पक्षधर और भारत की
सांझी विरासत के सजग प्रहरी-
फिल्म अभिनेता ,चिन्तक ,नाटककार ,फ्रीडम फाइटर और कामरेड
अवतारकृष्ण हंगल का 26 अगस्त -2012 को मुंबई
में देहांत हो गया. राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में यह खबर या
तो नदारत रही या फिर हासिये पर. इलेक्ट्रोनिक मीडिया और कतिपय सजग टी
वी चेनल्स ने भी रस्म अदायगी के बतौर
ले-दे कर दो-चार मिनिट ही उनकी श्ख्शियत पर कम और उनकी शोले या गुड्डी
जैसी फिल्मों पर अधिक जाया किये। मैं चाहते हुए भी फ़िल्में नहीं
देख पाता जिन फिल्मों के कारण भारत के फिफ्टी प्लस एजर्स नर-नारी
ऐ के हंगल के मुरीद हैं उनकी वजह से मेरा और हंगल का नाता जीरो बटा
सन्नाटा है। मैं तो उनके प्रगातिशील विचारों और यथार्थ
बोधता से अभिभूत रहा हूँ।
गोरा रंग, सुर्ख चेहरा, पोपला मुखमंडल ,तेजस्वी आँखें,सफाचट गंजा सर,कड़क आवाज और अक्सर धोती-कुरते में आम हिन्दुतानी का रोल करने वाले अवतार कृष्ण हंगल को फ़िल्मी परदे पर देख-देख कर मेरी पीढी के स्त्री-पुरुष अब प्रौढ़ता की ओर अग्रसर हैं . आज जबकि ऐ के हंगल नहीं हैं तो भी लोग उनकी इसी छवि को धारण किये हुए हैं जो कि हंगल के व्यक्तित्व का सिर्फ एकांश मात्र है. जब तक में जनवादी लेखक संघ या प्रगतिशील लेखकों के साथ नहीं जुड़ा था तब तक यही समझता था कि हंगल [रहीम चाचा] कोई मुसलमान कलाकार हैं. उनके अधिकांश किरदार कुछ इस तरह अभिनीत हुए हैं की हंगल ने मानों उस किरदार को यथार्थ में जिया हो. खेर ... हंगल साब शुद्ध कश्मीरी पंडित थे.कश्मीरी भाषा में हंगल का मतलब हिरन या मृग होता है.हंगल के पूर्वजों ने तीन सौ साल पहले ठीक नेहरुओं की तरह कश्मीर छोड़ा और लाख लखनऊ आ वसे. उनके पिताजी अंग्रजों की नौकरी में पेशावर में पदस्थ थे।वहीँ जन्म हुआ था 1917 में अवतार कृष्ण हंगल का.
किशोर अवस्था में ही पढाई के साथ-साथ टेलरिंग इत्यादि कामों में आजीविका के मेहनत मशक्कात वाले अंदाज़ को सहज ही ह्र्द्यगगामी कर चुके श्री हंगल जी को बेहद जद्दोजहद से गुजरना पड़ा।महात्मा गाँधी ,सीमान्त गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान इत्यादि विभूतियों को जब भारत छोडो आन्दोलान के गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने जुलुस निकाले लाठियां खाई .दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हंगल साहब का परिवार पेशावर से कराची आ गया।उनके पिता सेवा निव्रत हो चुके थे .आजादी की बेला में काफी उथल-पुथल के दिन थे।हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था।इसी बीच हंगल साब ट्रेड युनियन से जुड़ चुके थे .तत्कालीन एटक के संघर्षों में शामिल होकर देशी विदेशी इजारेदार शाशकों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होकर ऐ के हंगल अब तक कॉम .हंगल हो चुके थे।इसके बाद पूरी जिन्दगी वे देश के मेहनतकशों के संघर्षों के साक्षी रहे।प्रगतिशील लेखक संघ,जनवादी लेखक संघ और इप्टा ईत्यादी के मार्फ़त भारत पाकिस्तान की साझी विरासत को संजोये रहते हुए आपसी भाईचारा और अमन के पैगाम देते चले गए।
मुझे उनकी 250 फिल्मों के नाम याद नहीं. 2-4 को छोड़ अधिकांश को देखने का न तो अवसर मिला और न ही कोई ख्वाइश दर पेश हुई. किन्तु उनके इस सामाजिक,राजनैतिक और वैचारिक अवदान से देश का शोषित वर्ग और प्रगतिशील तबका जरुर गौरवान्वित रहा करता था।
मेरा उनकी विचारधारा से सीधा सरोकार सदैव रहा है।हंगल विचारधारा के लिहाज़ से प्रतिबद्ध साम्यवादी रहे हैं। यह उजागर करने में देश के पूंजीवादी मीडिया ,दक्षिणपंथी मीडिया और साम्प्र्दायिक मीडिया को परेशानी हो सकती है किन्तु मुख्यधारा के मीडिया ने और बाएं वाजू के मीडिया ने अपने इस शानदार कामरेड 'अवतार कृष्ण हंगल ' के दुखद निधन उपरान्त भी न्याय नहीं किया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में जिन कारुणिक अवस्थाओं से वो गुजरे उसकी कहानी तो जग जाहिर है ही । अपने किशोर काल में ब्रटिश हुकूमत की संगीनों को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा था।भगतसिंह ,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान, फेज अहमद फेज, अल्लामा इकवाल ने हंगल को काफी नज़दीक से अनुप्रेरित किया। फिल्मों में आने से पहले बलराज साहनी ,पृथ्वीराज कपूर,हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय और उत्पल दत्त जैसी महान विभूतियों के साथ इप्टा इत्यादि के मंचों पर ऐ के हंगल शिद्दत से स्थापित हो चुके थे।
ऐ के हंगल 2004 में इंदौर में 'प्रगतिशील लेखक संघ' के सम्मेलन में बतौर अतिथि पधारे थे।उस समय उनसे चर्चा में काफी कुछ उनके बारे में हमे जानने का अवसर मिला .वे मार्क्सवाद -लेनिनवाद और सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के कट्टर समर्थक थे।उन्होंने फिल्म जगत में 40 साल काम किया ,250 फिल्मों में किया ओर लोगों को कौमी एकता तथा जम्हूरियत के कई समर्थक तैयार किये जिन्होंने न केवल एक्टिंग बल्कि गीत,ग़ज़ल और फिल्मों के निर्माण से माया नगरी मुंबई में भी 'वर्ग संघर्ष ' की ज्योत जला रखी है। कॉम .अवतार कृष्ण हंगल को जन-काव्य भारती ,जनवादी लेखक संघ की ओर से श्रधांजलि अर्पित की गई। कॉम हंगल अमर रहे।.. कॉम हंगल लाल सलाम।.....
श्रीराम तिवारी
गोरा रंग, सुर्ख चेहरा, पोपला मुखमंडल ,तेजस्वी आँखें,सफाचट गंजा सर,कड़क आवाज और अक्सर धोती-कुरते में आम हिन्दुतानी का रोल करने वाले अवतार कृष्ण हंगल को फ़िल्मी परदे पर देख-देख कर मेरी पीढी के स्त्री-पुरुष अब प्रौढ़ता की ओर अग्रसर हैं . आज जबकि ऐ के हंगल नहीं हैं तो भी लोग उनकी इसी छवि को धारण किये हुए हैं जो कि हंगल के व्यक्तित्व का सिर्फ एकांश मात्र है. जब तक में जनवादी लेखक संघ या प्रगतिशील लेखकों के साथ नहीं जुड़ा था तब तक यही समझता था कि हंगल [रहीम चाचा] कोई मुसलमान कलाकार हैं. उनके अधिकांश किरदार कुछ इस तरह अभिनीत हुए हैं की हंगल ने मानों उस किरदार को यथार्थ में जिया हो. खेर ... हंगल साब शुद्ध कश्मीरी पंडित थे.कश्मीरी भाषा में हंगल का मतलब हिरन या मृग होता है.हंगल के पूर्वजों ने तीन सौ साल पहले ठीक नेहरुओं की तरह कश्मीर छोड़ा और लाख लखनऊ आ वसे. उनके पिताजी अंग्रजों की नौकरी में पेशावर में पदस्थ थे।वहीँ जन्म हुआ था 1917 में अवतार कृष्ण हंगल का.
किशोर अवस्था में ही पढाई के साथ-साथ टेलरिंग इत्यादि कामों में आजीविका के मेहनत मशक्कात वाले अंदाज़ को सहज ही ह्र्द्यगगामी कर चुके श्री हंगल जी को बेहद जद्दोजहद से गुजरना पड़ा।महात्मा गाँधी ,सीमान्त गाँधी खान अब्दुल गफ्फार खान इत्यादि विभूतियों को जब भारत छोडो आन्दोलान के गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने जुलुस निकाले लाठियां खाई .दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हंगल साहब का परिवार पेशावर से कराची आ गया।उनके पिता सेवा निव्रत हो चुके थे .आजादी की बेला में काफी उथल-पुथल के दिन थे।हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था।इसी बीच हंगल साब ट्रेड युनियन से जुड़ चुके थे .तत्कालीन एटक के संघर्षों में शामिल होकर देशी विदेशी इजारेदार शाशकों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होकर ऐ के हंगल अब तक कॉम .हंगल हो चुके थे।इसके बाद पूरी जिन्दगी वे देश के मेहनतकशों के संघर्षों के साक्षी रहे।प्रगतिशील लेखक संघ,जनवादी लेखक संघ और इप्टा ईत्यादी के मार्फ़त भारत पाकिस्तान की साझी विरासत को संजोये रहते हुए आपसी भाईचारा और अमन के पैगाम देते चले गए।
मुझे उनकी 250 फिल्मों के नाम याद नहीं. 2-4 को छोड़ अधिकांश को देखने का न तो अवसर मिला और न ही कोई ख्वाइश दर पेश हुई. किन्तु उनके इस सामाजिक,राजनैतिक और वैचारिक अवदान से देश का शोषित वर्ग और प्रगतिशील तबका जरुर गौरवान्वित रहा करता था।
मेरा उनकी विचारधारा से सीधा सरोकार सदैव रहा है।हंगल विचारधारा के लिहाज़ से प्रतिबद्ध साम्यवादी रहे हैं। यह उजागर करने में देश के पूंजीवादी मीडिया ,दक्षिणपंथी मीडिया और साम्प्र्दायिक मीडिया को परेशानी हो सकती है किन्तु मुख्यधारा के मीडिया ने और बाएं वाजू के मीडिया ने अपने इस शानदार कामरेड 'अवतार कृष्ण हंगल ' के दुखद निधन उपरान्त भी न्याय नहीं किया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में जिन कारुणिक अवस्थाओं से वो गुजरे उसकी कहानी तो जग जाहिर है ही । अपने किशोर काल में ब्रटिश हुकूमत की संगीनों को उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा था।भगतसिंह ,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान, फेज अहमद फेज, अल्लामा इकवाल ने हंगल को काफी नज़दीक से अनुप्रेरित किया। फिल्मों में आने से पहले बलराज साहनी ,पृथ्वीराज कपूर,हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय और उत्पल दत्त जैसी महान विभूतियों के साथ इप्टा इत्यादि के मंचों पर ऐ के हंगल शिद्दत से स्थापित हो चुके थे।
ऐ के हंगल 2004 में इंदौर में 'प्रगतिशील लेखक संघ' के सम्मेलन में बतौर अतिथि पधारे थे।उस समय उनसे चर्चा में काफी कुछ उनके बारे में हमे जानने का अवसर मिला .वे मार्क्सवाद -लेनिनवाद और सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के कट्टर समर्थक थे।उन्होंने फिल्म जगत में 40 साल काम किया ,250 फिल्मों में किया ओर लोगों को कौमी एकता तथा जम्हूरियत के कई समर्थक तैयार किये जिन्होंने न केवल एक्टिंग बल्कि गीत,ग़ज़ल और फिल्मों के निर्माण से माया नगरी मुंबई में भी 'वर्ग संघर्ष ' की ज्योत जला रखी है। कॉम .अवतार कृष्ण हंगल को जन-काव्य भारती ,जनवादी लेखक संघ की ओर से श्रधांजलि अर्पित की गई। कॉम हंगल अमर रहे।.. कॉम हंगल लाल सलाम।.....
श्रीराम तिवारी