रविवार, 29 अप्रैल 2012

दुनिया के मेहनतकशों एक हो-एक हो!

       सर्वहारा वर्ग ,मेहनतकश वर्ग,मजदूर-किसान,संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर-कर्मचारी ,केंद्र-राज्य सरकारों के कर्मचारी,सार्वजनिक उपक्रमों और निजी क्षेत्र के मजदूर कर्मचारी तथा देश के प्रगतिशील पत्रकार-लेखक-साहित्यकार ,छात्र-नौजवान,संघर्षरत वेरोजगार युवा और ठेका मजदूर -कर्मचारी सभी की एकजुटता का आह्वान करने के लिए 'एक मई मजदूर दिवस ' एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी अवसर हुआ करता है.
      सारी  दुनिया के 'मेहनतकश' इस मई दिवस को 'अंर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस' के रूप में विगत सवा सौ वर्षों से मनाते आ रहे हैं.एक -मई मजदूर दिवस एकमात्र त्यौहार है जो 'सभी धर्म,जाति,मज़हब और राष्ट्रों के मेहनतकश आवाम द्वारा सामान रूप से सारे भूमंडल पर मनाया जाने लगा है.विश्व पैमाने पर  जनता जनार्दन के द्वारा मनाये जाने के लिए 'एक मई मजदूर दिवस'सर्वाधिक लोकप्रियता और महत्व हासिल कर चुका है.
  मानव सभ्यता के प्रारंभ से अब तक एक तरफ शोषण व दूसरी तरफ शोषितों का संघर्ष निरंतर चलता आ रहा है.शोषण -उत्पीडन के स्वरूप समय-समय पर बदलते रहे हैं और यह स्वभाविक ही है कि इस शोषण के मुकाबले में  सर्वहारा वर्ग के संघर्षों का स्वरूप भी बदलता रहा है.प्राचीन और मध्ययुग  में सामंतवाद  ने,विगत दो शताब्दियों में पूंजीवाद ने और विगत सौ वर्षों से पूंजीवादी साम्राज्यवाद ने दुनिया भर में लूट मचा रखी है. भारत में भी यही सिलसिला सदियों से जारी है.
                                                     स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की जनता को खुशफहमी हुई  थी कि विलायती साम्राज्यवादी दासता और देशी सामंती -राज-रजवाड़ों  के शोषण  की चक्की से उन्हें छुटकारा  मिल गया है और अब  वे  'दुःख भरे  दिन बीते रे भैया ....अब सुख आयो रे....' की धुन पर  नाचेंगे! गायेंगे!! वास्तविकता हम सभी के सामने है.स्वदेशी शाशकों ने आज़ादी के ६५ वर्ष बाद भी देश की मेहनतकश जनता को केवल उत्पादन का निर्जीव संसाधन माना है. सरकार और देश संचलन की नातियाँ ; उक्त शोषण की शक्तियों के पक्ष में तय कीं जातीं रहीं हैं. कार्यक्रम भी इन्ही शोषक-शासक वर्गों के पक्ष में  तय किये जाते रहे हैं. ,परिणाम सामने हैं.
               आज देश में लाखों कल -कारखाने बंद पड़े हैं,जो आधे-अधूरे उद्द्योग और सार्वजनिक उपक्रम  वे-मन से चलाये जा रहे हैं उनमे भी शोषण-उत्पीडन की कहानी अलग है और निजीकरण -उदारीकरण के नाम पर चंद मुनाफाखोर ,बेईमानों को शासन-प्रशासन द्वारा दी जा रही लूट की खुली छुट के आख्यान  बहुश्रुत हो चुके हैं.ठेकाकरण अब इस देश की नियति बन चुका है.शिक्षा,स्वास्थ्य,निर्माण,संचार,परिवहन तथा सुरक्षा क्षेत्र तक अब ठेकेदारों के हवाले हो चुका है.कभी-कभी लगता है वर्तमान सरकार भी शायद ठेके पर ही चल रही है.उद्योगपतियों की आमदनी में सेकड़ों गुणा इजाफा हुआ है, पूंजीवादी दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी करोड़पतियों, arabpatiyon,खरबपतियों की संख्या में इजाफा हुआ है.सुना है विगत २०१०-२०११ में ४८ खरबपति थे अब ७० हो गए हैं.पढने -सुनने में अच्छा लगा की चलो आजादी का और खास तौर से उदारीकरण-वैश्वीकरण-निजीकरण का फायदा कम से कम पूंजीपतियों,अफसरों और पूंजीवादी राजनैतिक पार्टियों के चंद चोट्टे नेताओं को तो हुआ!
                                       दूसरी ओर देश के मेहनतकशों की और आम जनता की हालत का दिग्दर्शन  अब कोई आक्रोश या विद्रोह नहीं जगाता.मजदूर वर्ग का एक बड़ा तबका अब ठेकाकरण के चक्रव्यूह में फंसकर संघर्षों से कट चुका है.निम्न मध्यम वर्ग को कांग्रेस -भाजपा जैसी पूंजीवादी पार्टियों ने ,क्षेत्रीय -जातीयतावादी ,भाषावादी,और साम्प्रदायिक पार्टियों ने गोल बंद कर रखा है.इनसे जो बच गए वे लोग अपने दुखों और कष्टों का निवारण उन ढोंगी बाबाओं और बेब्कुफ़ समाज सेवियों  के अन्धानुकरण  में खोजते-भटकते फिर रहे हैं.चूँकि सर्वहारा वर्ग अर्थात आवाम बुरी तरह विभाजित है इसीलिये कोई  बड़ी और कारगर चुनौती उस व्यवस्था के खिलाफ नहीं है जिसे 'पतनशील पूंजीवादी' व्यवस्था कहते है.
      आज बाज़ारों में ,दुकानों-गोदामों और मंडियों में अनाज,खाद्यान्न और जीवन उपयोगी  'माल' भरा पड़ा है ,ग्राहक नहीं है ,आम आदमी के पास क्रय शक्ति नहीं है.सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के वावजूद केंद्र और राज्यों की सरकारों ने नंगे भुन्खों गरीबों को सस्ती दरों पर अनाज नहीं दिया. केंद्र सरकार ने अनेक बार पूंजीपतियों के नकली घाटों के मद्द्ये नजर  उनकी  'मदद' की है किन्तु राष्ट्रीय उपक्रमों को कोई मदद देने के बजाय उसका कच्मुर निकलने पर तुले रहे 'भारत संचार निगम 'इसका जीवंत उदहारण है .विगत पांच सालों में केंद्र सरका र ने बी एस एन एल से  ४० हजार करोड़ और राज्य सरकारों ने १० हजार करोड़ लूट लिए .किसी ने रत्ती भर सहयोग नहीं किया.यु एस ओ और ऐ  डी सी भी बी एस एन एल को नहीं दिया.मोबाइल का लायसेंस भी निजी क्षेत्र को १० साल पहले दे दिया जबकि सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों -बी एस एन एल और एम् टी एन एल को बहुत बाद में कोर्ट  के आदेश पर दिया गया.संसाधनों, एकुप्मेंट्स  परचेज प्रक्रिया और स्पेक्ट्रम धांधली के कारण सरकारी क्षेत्र याने जनता की सम्पत्ति को गहरा आघात लगा है.यह सब  निजी क्षेत्र को साधने के लिए किया गया.महा लेखा परीक्षक और भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उनके संग्यानों पर जो कार्यवाही की उसी का परिणाम है की कतिपय मंत्री अफसर जेल की हवा खा चुके है या खा रहे हैं.
   मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार अखवारों और मीडिया में भले ही लोक प्रियता का ढोंग रच ले किन्तु उनके कारनामे वेहद अनैतिक और अमानवीय हैं.राज्य सरकार का फरमान है की पिछले वर्ष से २० % ज्यादा शराब इस वर्ष बिकना चाहिए.याने  चाहे कोई पिए -न पिए,जिए या मरे आप तो आबकारी वालों  के मार्फ़त जनता को लूटो उसे नशेड़ी और नाकारा बनाकर बर्बाद कर डालो.
  आजकल भृष्टाचार के खिलाफ कुछ लोग जागरूक होकर लोकपाल बिल पास करने और राजनीती में शुचिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं ,देश के मजदूर किसान और ईमानदार लोग उनका साथ दे रहे थे किन्तु यहाँ व्यक्तिवादी  अहम् के टकराव और 'राजनीती की २२ पसेरी धान 'एक साथ तौलने  से आन्दोलन बिखरने लगा है. भृष्टाचार,वेरोजगारी,महंगाई और अवैध खनन के खिलाफ आम जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर तो है किन्तु वह संगठित क्षेत्र के मजदूर संघों की तरह सुसंगठित नहीं होने से असहाय और निरुपाय है. मजदूर दिवस एक ऐंसा महान पर्व है जो न केवल मेहनतकश -सर्वहारा बल्कि आम जनता के उन हिस्सों की एकता और उसके संयुक संघर्ष का दिशा निर्देश करता है जिनका आक्रोश इस व्यवस्था के खिलाफ है.
  मजदूर वर्ग ने विगत १२५ वर्षों में ,शिकागो के अमर शहीदों  के लहू की पुकार  सुनकर अनवरत संघर्ष से बहुत कुछ हासिल किया है.स्वतंत्रता,समता ,बंधुत्व और प्रजातांत्रिक मूल्यों की जननी फ्रांसीसी क्रांति ,महान सर्वहारा सोवियत क्रांति ,चीन की कम्युनिस्ट क्रांति और भारत समेत सारी दुनिया की आज़ादी को प्रकाशित करने का  गौरव शिकागो के उन अमर शहीदों को है जिन्होंने न केवल काम के घंटे आठ करने बल्कि स्वभिमान से जीने की कीमत अपनी जान देकर चुकी थी.संघर्षों से प्राप्त बुनियादी अधिकारों तथा मानवीय मूल्यों के सुरक्षा के लिए ,समाजवाद की स्थापना के लिए भृष्टाचार मुक्त ,शोषण विहीन वास्तविक प्रजातंत्रिक व्यवस्था के लिए अनवरत संघर्षों का शंखनाद करने वाले शहीदों को लाल सलाम ......
      इन्कलाब जिन्दाबाद .....
       एक-मई मजूर दिवस जिंदाबाद......
        मई दिवस के शहीदों  को लाल सलाम .......
         दुनिया के मेहनतकशों एक हो...एक हो.......
                                                                                       श्रीराम तिवारी

रविवार, 15 अप्रैल 2012

FIVE BEST SMS OF TODAY.

Do you know 8 best Doctors in the World?
1-Sunlight,2-Water,3-Rest,4-Air,5-Diet,6-Exercise, 7-Self confidence, 8-friends.
Maintain them in all stages of Life.
   ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''=''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
In order to have a comfortable journey of life,reduce the luggage of Desires.

'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
The care and affection which you get from others....is the gift of your own character maintain it ....
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
Two the hardest test in life "The patience to wait for the Right moment and the courage  to accept that you waited for nothing"
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
If You Alone & sudenly get 'chest pain'that radiates to your left arms , Immidiate up to your jaw then it may be 'heart attack' If no one to help & hospital is far,then don't wait any body.You  help yourself.Cough repeatedly and vigorusly-take deep breath before every cough.Deep breath gest oxygen to lungs-coughing  keeps blood circulation alive.
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''='''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

वर्तमान व्यवस्था काज़ल की कोठरी...और कोई उससे अछूता नहीं.

 हिंदी उपन्यास 'राग दरबारी' में स्वर्गीय श्रीलाल शुक्ल ने अवधी की एक लोक कहावत का उल्लेख किया है 'जईस पशु तईस बंधना' अर्थात जैसा पशु तेंसा बंधना गोकि जिस चीज से बकरी या कुत्ते को बांधते हैं उससे शेर ,तेंदुआ ,गीदड़, भेड़िया नहीं बांधे जा सकते और उन्मत्त हाथी तो कदापि नहीं .सामंतकालीन दौर में यह सिद्धांत प्रचलित था कि 'यथा राजा तथा प्रजा'    पूंजीवादी प्रजातंत्र  ने जनता को बेबकूफ बनाने के निमित्त जुमला जड़ा कि- जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए' अब आज के नव-उदारवादी पूंजीवाद में जबकि सामाजिक मूल्यहीनता  और वित्तीय पूंजी का तांडव अपने चरम पर है तो नया   नारा  गढ़ा जा रहा है- ' यथा  पूंजी  तथा राजा'. इस विद्रूपता को निम्नांकित घटनाओं से सत्यापित किया जा सकता है.
        अभी कुछ दिनों पहले उत्तरप्रदेश के एक विधायकजी  [समाजवादी पार्टी के]  ने एक शानदार काम कर दिखाया. बदायूं के इन  विधायक महोदय  से मिलने चार-पांच व्यापारी  लोग उनके दफ्तर पहुंचे और विधायकजी के चरणों में रुपयों से भरे लिफाफे अर्पित कर दिए. विधायकजी  ने गुप्त कैमरे लगा रखे थे सो उनकी वीडियो रिकार्डिंग और लिफाफे पुलिस को सुपर्द कर दिए. लिफाफे देते समय  इन ईमानदार विधायकजी ने उन रिश्वत देनेवाले व्यापारियों से वजह भी पूंछी कि ये रूपये किस बात के दे रहे हो तो जबाब मिला- हम लोग सरकारी कंट्रोल का माल खुले बाज़ार में बेचते हैं और पहले वाले विधायकजी को जितना संरक्षण शुल्क [रिश्वत] दिया करते थे उतना आपको भी देते रहेंगे. अब विधायकजी ने तो अपनी ईमानदारी दिखाने की कोशिश में  मामला कानून के हवाले कर दिया किन्तु मीडिया, अन्ना एंड कंपनी, बाबा रामदेव और जमानेभर के वे ढपोर-शंखी जो पानी पी पीकर सभी  राजनीतिज्ञों को गाली  देकर अपनी छवि चमकाने की  फितरत  में लगे रहते  हैं;  बताएं कि इन स्वार्थान्ध  व्यापारियों  ,ठेकेदारों, दलालों के बारे में उनकी राय क्या है?    देश में पूंजीपति , भूस्वामियों और कार्पोरेट हस्तियों द्वारा फैलाया गया भृष्टाचार का जाल जिन्हें नहीं दिखता उन  सभी तथाकथित गैर राजनैतिक व्यक्तियों ,ग्रुपों और उनके अनुयाइयों    को इस सड़ी-गली व्यवस्था  के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?
                यह एक अकाट्य सत्य है कि  भृष्टाचार की गटर-गंगा केवल  राजनीति में नहीं है, अपितु देश और समाज के बुर्जुआ वर्ग में, व्यवस्था  के हरेक अंग में विद्यमान है. विशुद्ध मार्क्सवादी नजरिये से कहा जाए तो बुर्जुआ-वर्ग के हाथों  इस सड़ी-गली पत्नोंमुखी व्यवस्था का सञ्चालन कराने  में जिनके स्वार्थ निहित हैं वे भद्रलोक में रहने वाले देशी-विदशी पूंजीपति और बड़े ज़मींदार  आज  इतने ताकतवर हैं कि  न केवल संचार माध्यमों, न केवल धर्म-गुरुओं, न केवल एन.जी.ओ संचालकों अपितु    समस्त सांस्कृतिक-साहित्यिक और सामाजिक ताने-बाने   को अपनी अँगुलियों पर नचा रहे हैं. इनके खिलाफ कोई अन्ना हजारे, कोई बाबा रामदेव, रविशंकर एक शब्द नहीं बोलते! क्यों? हालाँकि पब्लिक सब जानती है!
 अभी विगत दिनों भोपाल में एक आर टी आई कार्यकर्ता शहला मसूद कि हत्या कर दी गई, सुपारी सूटरों के सी.बी.आई द्वारा गिरफ्तार हो जाने पर जिन सफ़ेदपोश लोगों के नाम सामने आ रहे हैं उस पर  अन्ना ,रामदेव या रविशंकर सभी चुप है! क्यों देश भर में आमतौर पर और एम्.पी ,गुजरात ,बंगाल और  केरल में खासतौर से रोज-रोज हत्याएं और बलात्कार कि ख़बरों पर ये भृष्टाचार उन्मुलक खामोश   हैं?
          अभी दो -चार दिन पहले ओडीसा में नक्सलवादियों  ने कतिपय निर्दोष विदेशी सैलानियों और एक स्थानीय विधायक का अपहरण कर लिया था ,ओडीसा सरकर [राजनीतिज्ञों] ने बड़ी सूझ बूझ और रणनीतिक कौशल से न केवल विदेशी सैलानियों को  नक्सलवादियों के खुनी पंजे से आज़ाद करवाया बल्कि विदेशों में भारत की साख  को कायम रखा. बड़े दुःख की बात है कि इस देश के नैतिक ठेकेदारों -अन्ना,रामदेव,रविशंकर और ढपोरशंखी मीडिया ने  इस दौरान भी बजाय आतंकवाद का विरोध करने और ओडीसा सरकार का होसला बढ़ाने के उलटे देश में सेना और सरकार के बीच अविश्वाश फ़ैलाने की जघन्य और निंदनीय भूमिका तक  अदा  की है. मैं मानता हूँ कि जनरल बी के सिंह ने कुछ सही मुद्दों पर देश का ध्यानाकर्षण किया है,   हो सकता है कि केंद्र सरकार और खास तौर  से रक्षामंत्री एंटनी साहब से  रक्षा सेनाओं को  पर्याप्त रिस्पांस  न मिला हो! किन्तु इस सन्दर्भ में  दक्षिणपंथी विपक्ष , दकियानूसी मीडिया और बाबा रामदेव जैसों  कि   प्रतिक्रियाएं देशभक्तिपूर्ण  नहीं   कहीं जा सकतीं. ये सभी तो उस कहावत को चरितार्थ कर रहें हैं कि 'बांबी कूटें बावरे ,सांप न मारो जाय'
         केंद्र सरकार ने खाद्यान्य वस्तुओं-सब्जियों,फलों,दूध ,मिठाई और दवाई  इत्यादि के माप-तौल शुद्धता  मानकीकरण विषयक क़ानून संसद में पारित किया है.आम जनता को इस बारे में कितना मालूम है ये तो तब मालूम पड़ा जब दुनिया भर के मिलावट खोरों ,जमाखोरों,कालाबाजारियों और महाभ्रष्ट  मुनाफाखोरों  ने एम्.पी में विगत ९-१०-११ अप्रैल को तीन दिनी हड़ताल की थी. यह हड़ताल एम्.पी की शिवराज सरकार के इशारे पर  संघ परिवार और वानिया पार्टी द्वारा केंद्र सरकार को जनता की नज़रों में विलेन सावित करने के उद्देश से की गई थी  किन्तु जनता ने इस तमाशे के परिणामों को बहुत गंभीरता से लिया है.हजारों लीटर दूध सड़कों पर ढोल दिया जाता रहा ,फल सब्जियां सड़ते रहे ,आम आदमी हर चीज को तरसता रहा किन्तु  अधिकांश मीडिया,राज्य सरकार की प्रशाशनिक मशीनरी,जंतर-मंतर वाले बाबा और दिल्ली में रामलीला मैदान पर अनशन का स्वांग रचाने वाले सब  चुप रहे !क्यों? क्या धनियाँ में घोड़े कि लीद मिलाना  ,दूध में गन्दा पानी  मिलाना,मिठाइयों और फास्ट फ़ूड के नाम पर जनता को ज़हर खिलाना इन्हें मंजूर है? जिन्होंने   ऐयाश अधिकारीयों को रिश्वत देकर जनता को निरंतर लूटते रहने का जो निजाम खड़ा किया है ,उसे  बचाए रखना ही उद्देश्य  है तो सिर्फ केंद्र सरकार पर ही आक्रमण क्यों?
                     एम्.पी की शिवराज  सरकार और सफ़ेद पोश व्यापारियों ने ये तीन दिनी हड़ताल का जो  नाटक किया है उस पर अन्ना,रामदेव,श्री श्री और सुब्रमन्यम  स्वामी  इत्यादि इत्यादि चुप क्यों हैं? हकीकत ये कि 'ये पब्लिक है सब जानती है' उसे मालुम है कि हकीकत क्या है?  लोग जानते हैं कि 'ये इश्क नहीं आशान .....; और
  कौन चोर है?कौन साहूकार  है?कौन सच्चा देशभक्त और कौन पाखंडी है? कुएं में भांग पड़ी है ,हम्माम में सब नंगे हैं' या जिसकी पूंछ उठाओ वही मादा नज़र आता है' इत्यादि मुहावरों को शायद इस दौर के लिए ही गढ़ा गया होगा!
                        इस सन्दर्भ में एक वाकया दृष्टव्य है. भोपाल के  एक  विशालकाय नवनिर्मित भवन में हमारी यूनियन का द्विवार्षिक अधिवेशन चल रहा था. इंदौर डिस्टिक के प्रतिनिधि की हैसियत से इस अधिवेशन में इन पंक्तियों का लेखक भी शिरकत कर रहा था.तब मेरी उम्र 24 साल की थी और सर्विस २ साल की . किसी सार्वजनिक सम्मलेन में यह मेरा  पहला अवसर और अनुभव था. इस तीन दिवसीय सम्मेलन  की अध्यक्षता करने वाला  व्यक्ति वहुत विद्द्वान और ओजस्वी वक्ता था.उनका नाम शायद सत्तू शर्मा था और वो सतना दूरसंचार आफिस से पधारे थे.इस अधिवेशन की  एक घटना  मेरे मनोमस्तिष्क  को  यदा-कदा  उद्द्वेलित करती रहती हैं. इस घटना  का उल्लेख सम्भवत; प्रस्तुत आलेख  को उसके उपसंहार तक ले जाने में सक्षम होगी.   जिस श्रम संगठन का द्विवार्षिक अधिवेशन चल रहा था उसके करता-धर्ता को परिमंडल सचिव  कहा जाता था.वे कोई परिहार नाम के सज्जन पुरुष थे,उनकी ईमानदारी पर सभी को एतवार था.फिर भी इन सज्जन पर अर्थात  तत्कालीन परिमंडल सचिव महोदय  पर किसीसनातन बिघ्न संतोषी और परंपरागत  विरोधी ने आरोप जड़ दिया  कि   सचिव महोदय  ने यूनियन आफिस के नाम पर जो मैगजीन -पेपर वगेरह खरीदे वे उनके स्वयम के उपयोग में आये हुए माने जाएँ और उस मद में खर्च हुआ पैसा [लगभग ३० रूपये] वसूल किया जाए.आरोप  नितांत बचकाना था ,चूँकि  श्री परिहार जी की ईमान  दारी पर अधिकांस लोगों को बहुत भरोसा था  अतएव सारा सदन गुस्से से लाल हो उठा और  सभी ने उस आरोप लगाने वाले  कि ओर अंगुली उठाकर मुक्का हवा में लहराते हुए  समवेत स्वरों में नारा लगाया ' हम सब चोर है"हम सब चोर हैं ' ... मुझे तब कुछ भी सूझ नहीं पड़ा कि  मांजरा  क्या है? 'हम सब चोर कैसे हो सकते हैं?क्योकि कम -से कम मेने तो कोई चोरी नहीं की थी.  फिर भी में उस तुमुल कोलाहल में सभी के साथ पूरे  जोश-खरोश  के साथ बिना किसी उद्देश्य और कारण के नारा लगा रहा था-हम सब चोर हैं...हम सब चोर हैं....इन्कलाब -जिंदाबाद....हम सब एक हैं....हम सब चोर हैं....साथी परिहार -जिंदाबाद....आरोप लगाने बाला -मुर्दाबाद.....हमारी  एकता -जिन्दावाद.....
   यदि मैं  उस उत्तेजक समूह का साथ नहीं देता तो मेरा भी वही हश्र होता जो आरोप लगाने वाले का हुआ अर्थात सदन से उठाकर बाहर फेंक दिया जाता. 'हम सब चोर हैं' का नारा कब कहाँ जन्मा ये तो अन्वेषण और अनुसन्धान का विषय है किन्तु मुझे इस घटना ने  कई सबक सिखा दिए. कि यदि कोई व्यक्ति अपने सार्वजनिक जीवन में वास्तविक रूप से हितधारकों  के प्रति जबाबदेह है,अपनी वैयक्तिक शुचिता और नेक-नियति में सजग है   तो उसकी जाने-अनजाने हुई गलतियों को उसी तरह नज़र अंदाज़ किया जा सकता है जैसे कि श्री परिहार साहब कोउस अधिवेशन में न केवल   माफ़ किया गया बल्कि अगले सत्र के लिए पुन; चुन लिया गया. आरोप लगाने वाले धूर्त का मुझे अब नाम भी याद नहीं रहा.. इस घटना के साक्षियों ने स्वयम के सीने पर हाथ रखकर कहा कि यदि हमारा नेता[परिहार ]चोर है तो  'हम सब चोर हैं' और यदि हम सब ईमानदार हैं तो हमारा नेता  भी ईमानदार  ही है  ,इसमें रंचमात्र संदेह नहीं.  इस घटना ने मुझे ये भी सिखाया कि यदि में किंचित  बेईमान हूँ,देश का ख़याल न करके अपना स्वार्थ साधता हूँ या समाज  और देश को हानि  पहुंचाकर अपने निहित स्वर्थों की  आपूर्ति करता हूँ  तो मुझे  यह उम्मीद क्यों रखनी चाहिए कि हमारे नेता मंत्री और राष्ट्र नायक  निष्पाप, निष्कलंक और महामानव हों?एक और सीख कि यदि में एक अंगुली किसी और की ओर उठाता हूँ तो बाकि चार खुद -बा-खुद मेरी ओर मूढ़ जाती हैं. क्यों? व्यवस्था जन्य सामूहिक दुखों ,कष्टों और राष्ट्रीय-आपदाओं के निवारणार्थ राज्य सत्ता पर आसीन लोगों का सिर्फ  शरीफ और ईमानदार होना ही काफी नहीं बल्कि उनके पास उस दर्शन की ग्राहिता भी होना चाहिए जिससे मानव मात्र का कल्याण हो ,सभी को सम्मान मिले, सभी को रोजगार ,शिक्षा ,स्वास्थ और रोटी-कपडा-मकान की तामीर हो.बेहतर सुशासन के लिए अभी तक तो एक ही विकल्प उपलब्ध है जिसे 'साम्यवाद'समाजवाद या जनवादी प्रजातंत्र के नाम से दुनिया भर में सम्मान मिला है.
        आज यत्र-तत्र-सर्वत्र विज्ञान ,विकाश,प्रजातंत्र और सूचना माध्यमों का  बोलबाला असमानता  ,शोषण, उत्पीडन  के खिलाफ और सम्पूर्ण मानवता के उत्कर्ष की निरंतर लड़ाई लड़ने वाले साम्यवादियों का जनसमर्थन बेशक  घटा है. ढोंगी बाबाओं और कोरे आदर्शवादियों का ,साम्प्रदायिक-जातीयतावादियों का भले ही आज बोलबाला है. कुच्छ  ने तो  साम्यवाद के नारे भी  चुरा लिए हैं .किन्तु वे अनगढ़ मूढमति स्वनामधन्य सुधारवादी इस तथ्य से बिलकुल अनजान हैं कि सिर्फ 'परिवर्तन का नियम ही  अपरिवर्तनीय है' शेर की खाल ओढ़ लेने से  स्यार  शेर नहीं हो जाता. जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए  क्रांति की मशाल तो केवल उन्ही हाथों में शोभा देती है जो इस पतनशील व्यवस्था के    जर-खरीद  गुलाम  नहीं अपितु 'क्रूसेडर' हैं.
                          श्रीराम तिवारी