सर्वहारा वर्ग ,मेहनतकश वर्ग,मजदूर-किसान,संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर-कर्मचारी ,केंद्र-राज्य सरकारों के कर्मचारी,सार्वजनिक उपक्रमों और निजी क्षेत्र के मजदूर कर्मचारी तथा देश के प्रगतिशील पत्रकार-लेखक-साहित्यकार ,छात्र-नौजवान,संघर्षरत वेरोजगार युवा और ठेका मजदूर -कर्मचारी सभी की एकजुटता का आह्वान करने के लिए 'एक मई मजदूर दिवस ' एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी अवसर हुआ करता है.
सारी दुनिया के 'मेहनतकश' इस मई दिवस को 'अंर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस' के रूप में विगत सवा सौ वर्षों से मनाते आ रहे हैं.एक -मई मजदूर दिवस एकमात्र त्यौहार है जो 'सभी धर्म,जाति,मज़हब और राष्ट्रों के मेहनतकश आवाम द्वारा सामान रूप से सारे भूमंडल पर मनाया जाने लगा है.विश्व पैमाने पर जनता जनार्दन के द्वारा मनाये जाने के लिए 'एक मई मजदूर दिवस'सर्वाधिक लोकप्रियता और महत्व हासिल कर चुका है.
मानव सभ्यता के प्रारंभ से अब तक एक तरफ शोषण व दूसरी तरफ शोषितों का संघर्ष निरंतर चलता आ रहा है.शोषण -उत्पीडन के स्वरूप समय-समय पर बदलते रहे हैं और यह स्वभाविक ही है कि इस शोषण के मुकाबले में सर्वहारा वर्ग के संघर्षों का स्वरूप भी बदलता रहा है.प्राचीन और मध्ययुग में सामंतवाद ने,विगत दो शताब्दियों में पूंजीवाद ने और विगत सौ वर्षों से पूंजीवादी साम्राज्यवाद ने दुनिया भर में लूट मचा रखी है. भारत में भी यही सिलसिला सदियों से जारी है.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की जनता को खुशफहमी हुई थी कि विलायती साम्राज्यवादी दासता और देशी सामंती -राज-रजवाड़ों के शोषण की चक्की से उन्हें छुटकारा मिल गया है और अब वे 'दुःख भरे दिन बीते रे भैया ....अब सुख आयो रे....' की धुन पर नाचेंगे! गायेंगे!! वास्तविकता हम सभी के सामने है.स्वदेशी शाशकों ने आज़ादी के ६५ वर्ष बाद भी देश की मेहनतकश जनता को केवल उत्पादन का निर्जीव संसाधन माना है. सरकार और देश संचलन की नातियाँ ; उक्त शोषण की शक्तियों के पक्ष में तय कीं जातीं रहीं हैं. कार्यक्रम भी इन्ही शोषक-शासक वर्गों के पक्ष में तय किये जाते रहे हैं. ,परिणाम सामने हैं.
आज देश में लाखों कल -कारखाने बंद पड़े हैं,जो आधे-अधूरे उद्द्योग और सार्वजनिक उपक्रम वे-मन से चलाये जा रहे हैं उनमे भी शोषण-उत्पीडन की कहानी अलग है और निजीकरण -उदारीकरण के नाम पर चंद मुनाफाखोर ,बेईमानों को शासन-प्रशासन द्वारा दी जा रही लूट की खुली छुट के आख्यान बहुश्रुत हो चुके हैं.ठेकाकरण अब इस देश की नियति बन चुका है.शिक्षा,स्वास्थ्य,निर्माण,संचार,परिवहन तथा सुरक्षा क्षेत्र तक अब ठेकेदारों के हवाले हो चुका है.कभी-कभी लगता है वर्तमान सरकार भी शायद ठेके पर ही चल रही है.उद्योगपतियों की आमदनी में सेकड़ों गुणा इजाफा हुआ है, पूंजीवादी दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी करोड़पतियों, arabpatiyon,खरबपतियों की संख्या में इजाफा हुआ है.सुना है विगत २०१०-२०११ में ४८ खरबपति थे अब ७० हो गए हैं.पढने -सुनने में अच्छा लगा की चलो आजादी का और खास तौर से उदारीकरण-वैश्वीकरण-निजीकरण का फायदा कम से कम पूंजीपतियों,अफसरों और पूंजीवादी राजनैतिक पार्टियों के चंद चोट्टे नेताओं को तो हुआ!
दूसरी ओर देश के मेहनतकशों की और आम जनता की हालत का दिग्दर्शन अब कोई आक्रोश या विद्रोह नहीं जगाता.मजदूर वर्ग का एक बड़ा तबका अब ठेकाकरण के चक्रव्यूह में फंसकर संघर्षों से कट चुका है.निम्न मध्यम वर्ग को कांग्रेस -भाजपा जैसी पूंजीवादी पार्टियों ने ,क्षेत्रीय -जातीयतावादी ,भाषावादी,और साम्प्रदायिक पार्टियों ने गोल बंद कर रखा है.इनसे जो बच गए वे लोग अपने दुखों और कष्टों का निवारण उन ढोंगी बाबाओं और बेब्कुफ़ समाज सेवियों के अन्धानुकरण में खोजते-भटकते फिर रहे हैं.चूँकि सर्वहारा वर्ग अर्थात आवाम बुरी तरह विभाजित है इसीलिये कोई बड़ी और कारगर चुनौती उस व्यवस्था के खिलाफ नहीं है जिसे 'पतनशील पूंजीवादी' व्यवस्था कहते है.
आज बाज़ारों में ,दुकानों-गोदामों और मंडियों में अनाज,खाद्यान्न और जीवन उपयोगी 'माल' भरा पड़ा है ,ग्राहक नहीं है ,आम आदमी के पास क्रय शक्ति नहीं है.सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के वावजूद केंद्र और राज्यों की सरकारों ने नंगे भुन्खों गरीबों को सस्ती दरों पर अनाज नहीं दिया. केंद्र सरकार ने अनेक बार पूंजीपतियों के नकली घाटों के मद्द्ये नजर उनकी 'मदद' की है किन्तु राष्ट्रीय उपक्रमों को कोई मदद देने के बजाय उसका कच्मुर निकलने पर तुले रहे 'भारत संचार निगम 'इसका जीवंत उदहारण है .विगत पांच सालों में केंद्र सरका र ने बी एस एन एल से ४० हजार करोड़ और राज्य सरकारों ने १० हजार करोड़ लूट लिए .किसी ने रत्ती भर सहयोग नहीं किया.यु एस ओ और ऐ डी सी भी बी एस एन एल को नहीं दिया.मोबाइल का लायसेंस भी निजी क्षेत्र को १० साल पहले दे दिया जबकि सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों -बी एस एन एल और एम् टी एन एल को बहुत बाद में कोर्ट के आदेश पर दिया गया.संसाधनों, एकुप्मेंट्स परचेज प्रक्रिया और स्पेक्ट्रम धांधली के कारण सरकारी क्षेत्र याने जनता की सम्पत्ति को गहरा आघात लगा है.यह सब निजी क्षेत्र को साधने के लिए किया गया.महा लेखा परीक्षक और भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उनके संग्यानों पर जो कार्यवाही की उसी का परिणाम है की कतिपय मंत्री अफसर जेल की हवा खा चुके है या खा रहे हैं.
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार अखवारों और मीडिया में भले ही लोक प्रियता का ढोंग रच ले किन्तु उनके कारनामे वेहद अनैतिक और अमानवीय हैं.राज्य सरकार का फरमान है की पिछले वर्ष से २० % ज्यादा शराब इस वर्ष बिकना चाहिए.याने चाहे कोई पिए -न पिए,जिए या मरे आप तो आबकारी वालों के मार्फ़त जनता को लूटो उसे नशेड़ी और नाकारा बनाकर बर्बाद कर डालो.
आजकल भृष्टाचार के खिलाफ कुछ लोग जागरूक होकर लोकपाल बिल पास करने और राजनीती में शुचिता के लिए संघर्ष कर रहे हैं ,देश के मजदूर किसान और ईमानदार लोग उनका साथ दे रहे थे किन्तु यहाँ व्यक्तिवादी अहम् के टकराव और 'राजनीती की २२ पसेरी धान 'एक साथ तौलने से आन्दोलन बिखरने लगा है. भृष्टाचार,वेरोजगारी,महंगाई और अवैध खनन के खिलाफ आम जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर तो है किन्तु वह संगठित क्षेत्र के मजदूर संघों की तरह सुसंगठित नहीं होने से असहाय और निरुपाय है. मजदूर दिवस एक ऐंसा महान पर्व है जो न केवल मेहनतकश -सर्वहारा बल्कि आम जनता के उन हिस्सों की एकता और उसके संयुक संघर्ष का दिशा निर्देश करता है जिनका आक्रोश इस व्यवस्था के खिलाफ है.
मजदूर वर्ग ने विगत १२५ वर्षों में ,शिकागो के अमर शहीदों के लहू की पुकार सुनकर अनवरत संघर्ष से बहुत कुछ हासिल किया है.स्वतंत्रता,समता ,बंधुत्व और प्रजातांत्रिक मूल्यों की जननी फ्रांसीसी क्रांति ,महान सर्वहारा सोवियत क्रांति ,चीन की कम्युनिस्ट क्रांति और भारत समेत सारी दुनिया की आज़ादी को प्रकाशित करने का गौरव शिकागो के उन अमर शहीदों को है जिन्होंने न केवल काम के घंटे आठ करने बल्कि स्वभिमान से जीने की कीमत अपनी जान देकर चुकी थी.संघर्षों से प्राप्त बुनियादी अधिकारों तथा मानवीय मूल्यों के सुरक्षा के लिए ,समाजवाद की स्थापना के लिए भृष्टाचार मुक्त ,शोषण विहीन वास्तविक प्रजातंत्रिक व्यवस्था के लिए अनवरत संघर्षों का शंखनाद करने वाले शहीदों को लाल सलाम ......
इन्कलाब जिन्दाबाद .....
एक-मई मजूर दिवस जिंदाबाद......
मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम .......
श्रीराम तिवारी