शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
बीएसएनएल की मीडिया आलोचना के निहितार्थ
दुनिया भर में रोज़-रोज़, नई-नई तकनीक के उद्भव, विकास तथा विश्व बाज़ार में मांग की नित्यता के कारण दूरसंचार क्षेत्र ने अन्य सेवाओं और आवश्यक्ताओं में अग्रिम जगह बना ली है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाने से दूरसंचार सोवाओं का साहित्येतर आलोचनात्मक स्वरूप भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सेवा उपलब्धता, गुणवत्ता, कनेक्टीविटी तथा बिलिंग समेत अन्य मूल्य वर्धित प्रति-उत्पादों को ग्रोथ-क्राइसिस के कारण सर्वत्र ख़ामियों का मुंह देखना पड़ रहा है। ख़ासतौर से पीत-पत्रकारिता वाले अख़बार समूहों में अक्सर सरकारी क्षेत्र की खिंचाई होती दिखाई देती है। भले ही सर्विस ब्रेक का ज़िम्मेदार स्वयं निजी क्षेत्र ही क्यों न हो।
नि:संदेह वर्तमान PSUs (BSNL/MTNL) अतीत में केन्द्रीय सरकार की “मोनोपाली” के प्रतीक थे। ये कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि इस कंपनी के मैनेजर्स तथा मज़दूर-कर्मचारियों में कंपनीगत मानसिकता अथवा निजी क्षेत्र के बरअक्स प्रतिस्पर्धागत बाज़ारी भावना पैदा नहीं हो सकी। किन्तु यह भी सच है कि अतीत में पूरे सौ साल तक सरकार से बिना एक पैसा लिये इन्हीं मजदूर-कर्मचारियों ने एक शानदार इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जो सन् 2000 के दरम्यान खण्डित कर तीन टुकड़ों- BSNL+MTNL+VSNL में बांट दिया गया था।
अब सैम पित्रोदा समिति की अनुशंसाओं को अमल में लाया जाता है तो बचे-खुचे BSNL का सत्यानाश होने से कोई नहीं रोक सकता। चूंकि बाज़ार में निजी क्षेत्र के खिलाड़ी पस्त होते जा रहे हैं, उनकी नकली ऑडिट रिपोर्टों का भाण्डा फूटता जा रहा है उदाहरणार्थ; सत्यम कम्पनी का महाघोटाला; वे अपने मज़दूरों से 12-12 घण्टे काम लेने, कम तनख्वाह देने तथा पेंशन, ग्रेच्युटी नहीं देने एवं राजनीतिज्ञों को भ्रष्ट करने में कुख्यात रहे हैं, इस सबके बावजूद दूरसंचार क्षेत्र में पहले की तरह अंधाधुंध मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं। यदि वे कॉल दरें बढ़ाते हैं तो उपभोक्ता BSNL या सरकारी उपक्रमों पास चला जायेगा, जहां हर तरह की कथित लापरवाही के बावजूद एक बात की गारण्टी ज़रूर है कि हिडन चार्ज या नक़ली बिलिंग नहीं होती। यही वजह है कि निजी क्षेत्र के सारे ऑपरेटर्स द्वारा तयशुदा रणनीति के तहत केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया गया है कि BSNL का तियापांचा फौरन करो वरना लोकसभा में उनके पूंजीवादी नुमाईन्दे सरकार नहीं चलने देंगे क्योंकि BSNL के बाज़ार में रहते हुए कॉल-रेट बढ़ा पाना संभव नहीं है। अत: BSNL (सार्वजनिक उपक्रम) को एक बार फिर राजनैतिक दुराधरष षड़यंत्रों का शिकार बनाया जा सकता है। निजी क्षेत्र के कतिपय ऑपरेटर राजनीतिज्ञों से सीधे संबंध रखते हैं। सुखराम काण्ड, प्रमोद महाजन काण्ड तथा हाल ही में उजागर BSNL का 3G मैगा-टेण्डर निरस्तीकाण्ड अंतिम दुर्घटनाएं नहीं हैं। स्पैक्ट्रम नीलामी स्केम जगज़ाहिर है। आये दिन जान-बूझकर निजी क्षेत्र एवं प्रशासन तंत्र की मिलीभगत से BSNL के नेटवर्क को क्षति पहुंचाई जाती है।
चूंकी वर्तमान संचार मंत्री और पूर्व संचार मंत्री द्रमुक सुप्रीमो परिवार से सम्बन्धित हैं और इस परिवार में सत्ता संग्राम छिड़ा हुआ है अत: एक दूसरे को बाहर का रास्ता दिखाने की गरज से DOT/PMO में BSNL मैनेजमैंट तथा कम्पनी की सकल मिलकियत से सम्बन्धित सैम पित्रोदा कमेटी इत्यादि के बहाने विभिन्न घपलों को आये दिन उजागर किया जा रहा है। ऐसा करने वालों का मकसद भले ही पूरा न हो किन्तु BSNL की एक केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रम के रूप में किरकिरी ज़रुर हो रही है।
कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के कतिपय मंत्री जो स्टेट मिनिस्ट्री से संतुष्ट नहीं हैं; वे इस जुगाड़ में लगे हुए हैं कि इधर राजाजी के काम लगे और उधर उनकी कैबिनेट में ताजपोशी हो जाये या मंत्रालय का स्वतन्त्र प्रभार ही मिल जाये। यही वजह है कि विभिन्न ज़िलों के स्थानीय छुटभैये नेता बिना सोचे समझे BSNL (केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रम) पर तोहमत लगाते रहते हैं। ये नादान इतना भी नहीं समझते कि BSNL को कमज़ोर करने की कड़ी (I.T.I.) श्रीमती सोनिया गांधी के हाथों में है। प्रबन्धकीय अक्षमता (I.T.S.) की बागडोर स्वयं प्रधानमंत्री के हाथों में है। स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील है कि BSNL की कमज़ोरियों, ख़ामियों तथा तकनीकी अवरोधों का ढिण्ढोरा अखबारों में पीटने के बजाय उन नापाक तत्वों को सबक सिखाएं जो दिन-दहाड़े BSNL के नेटवर्क में गड़बड़ी के लिए BRTS/HIGHWAY/FOURLANE एवं निगम द्वारा शहर में सीमेंटीकरण के दरम्यान अंधाधुंद खुदाई करते है और जिसके कारण विगत दिनों BSNL को बहुत कुछ खोना पड़ा है। क्या वजह है कि निजी ऑपरेटर्स की केबल कटने या नेटवर्क में गड़बड़ी जो की अक्सर रहती है, के बावजूद अखबारों में इनके बारें में कुछ नहीं छपता? क्या वजह है कि उनके दर्जनों अवैध टॉवर रातों-रात वैध कर दिये गए? क्यों कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की गई? क्या BSNL के साथ इस प्रकार की सहनुभूति संभावित हो सकती है? कदापि नहीं! क्योंकि स्थानीय प्रशासन, भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, गैर-जिम्मेदार मीडिया-अखबारों तथा ठेकेदारों को देने के लिए धन खर्च की कोई वैधानिक मद BSNL के पास मौजूद नहीं है। अच्छे से अच्छा तकनीकी क्षमताधारक उपक्रम BSNL ग़लत प्रबंधन के कारण बाज़ार की अपेक्षित पूर्ति नहीं कर पा रहा है फिर भी उसकी शानदार विरासत के कारण ईमानदार ग्राहकों (जनता) का भरोसा क़ायम है।
यदि कोई सचेत राजनीतिज्ञ-अख़बारनवीस या आम जनता वाक़ई चाहती है कि देश में महंगाई और ज्यादा तेजी से न बढ़े, देश की संचार-व्यवस्था में विदेशी ताक़तों की घुसपैठ न हो, संचार क्षेत्र की दरें वर्तमान सस्ती दरों पर क़ायम रहें तथा नेटवर्क विश्व स्तरीय हो तो उन्हे चाहिये कि सार्वजनिक उपक्रम BSNL को बर्बाद करने वाली ताक़तों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें।
BSNL एम्पलाइज यूनियन का प्रत्येक संघर्ष इस अर्थ में देशभक्ति पूर्ण है कि वह एक ज़िम्मेदार संगठन की हैसियत से न केवल कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए संघर्षरत है अपितु निजी क्षेत्र से देश की जनता को लूट से बचाने के लिए दृढ़-संकल्पित है। जो उपभोक्ता BSNL की सेवाएं ले रहे हैं, वे देशभक्ति पूर्ण कार्य कर रहे हैं, क्योंकि वे पं. जवाहरलाल नेहरु के सकल्पों का सम्मान कर रहे हैं। जो उपभोक्ता निजी ऑपरेटरों की सेवाएं ले रहे हैं उन्हें ये जान लेना चाहिए कि उनका ऑपरेटर तभी तक वर्तमान निर्धारित दरों पर सेवाएं देगा जब तक निजी क्षेत्र का प्रतिस्पर्धी अर्थात सरकारी उपक्रम BSNL मैदान में डटा रहेगा। अन्ततोगत्वा निष्कर्ष यह है कि तमाम आलोचनाओं का स्वागत करते हुए BSNL निरन्तर अपनी पूर्व अवस्था में शिखर पर पहुंचने के लिए प्रयत्नशील है, किन्तु जिनके हाथों में इसकी बागडोर है, वे हाथ देशभक्ति पूर्ण होने चाहिए।
क्रान्तिकारी अभिवादन सहित आपका साथी
श्रीराम तिवारी
राष्ट्रीय संगठन सचिव,
B.S.N.L.E.U. C.H.Q.
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