शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

कॉ. ज्योति बसु-अमर रहें!!!




कॉ. ज्योति बसु के मुख्यमंत्री बनने से पूर्व भारत में एक नकारात्मक धारणा थी कि कम्युनिस्ट तो हिंसा से ही राजसत्ता हासिल करते हैं। इस धारणा को ज्योति बसु ने खंडित किया। आज सारी दुनिया में वामपंथ ने प्रजातांत्रिक प्रणाली से समाज में बदलाव के प्रयत्न जारी रखे हैं। कहीं-कहीं वर्ग-संघर्ष में खूनी मारकाट हो रही है वह साम्राज्यवाद का षड़यंत्र है। आम तौर पर इस हिंसा का शिकार मेहनतकश-सर्वहारा ही होता है।

महान सोवियत क्रांति (अक्टूबर क्रांति) के दौरान अनगिनत क्रांतिकारी शहीद हुए थे। संभवत: ऐसे बेगुनाह भी थे जो प्रतिक्रियावादियों के हाथों मौत के घाट उतार दिये गये थे। क्योंकि वे सभी सर्वहारा क्रान्ति के पक्षधर थे। द्वितीय विश्व युध्द में भी नाज़ियों, बर्बर-युध्दजनित महामारियों के परिणामस्वरूप बरसों तक लाखों बाल-वृध्द-महिलाएं अकाल-कवलित होते रहे। भारी क़ुर्बानी के बाद सोवियत कम्युनिस्ट क्रांति सफल हो सकी थी।

चीनी क्रांति के दौरान करोड़ों मज़दूर-किसान क्रांति की भेंट चढ़ते रहे। कुछ भुखमरी, महामारी, प्रतिहिंसा तथा विदेशी आक्रांताओं के शिकार हो कर असमय ही मृत्यु को प्राप्त हुए। लाखों किसान-मज़दूर लॉंग मार्च के दौरान ही भूखे प्यासे मरते गये। अनेक बलिदानों की कीमत पर चीनी क्रांति को स्थापित किया जा सका था। तदुपरान्त इस क्रांति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये सांस्कृतिक क्रान्ति का आह्वान किया गया; परिणामस्वरूप दस लाख से अधिक लोग उसमें भी मारे गये। इसी तरह चीनी साम्यवादी क्रांति को स्थिर बनाये रखने के प्रयासों मे थ्येन-आन-मन चौक जैसे प्रतिक्रांति प्रयासों को कुचलने में अनेकों जानें गयी थी।

क्यूबा, पूर्वी युरोप, विएतनाम, कोरिया, लातिनी अमेरिकी राष्ट्रों में संपन्न विभिन्न जनतांत्रिक-जनवादी क्रांतियों की जन्म दात्री विचारधारा (मार्क्सवाद-लेनिनवाद-वैज्ञानिक, ऐतिहासिक द्वंद्वात्मक भौतिकवाद सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयतावाद) को स्थपित करने में खूनी नरसंहार की परछाई सारी दुनिया में दिखाई देती है। सारी दुनिया में यह अवधारणा बन चुकी है कि बिना हिंसा-खून खराबे के पूंजीवाद को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता। सत्ता बन्दूक की नोंक से निकलती है या कि बिना हिंसा के मजदूर वर्ग की प्रभूसत्ता स्थापित होना संभव नहीं है, वगैरह-वगैरह.......। इन तमाम अवधारणाओं को तब और ज्यादा बल मिला जब 1974 मे चिली के तत्कालीन नवनिर्वाचित राष्ट्राध्यक्ष अलेन्दे की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई जब वे अपने देश को तथा देश के मजदूर वर्ग को अन्तर्राष्ट्रीय पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त कराने के लिये देश के संसाधनों का राष्ट्रीयकरण करने ही वाले थे। फौजी जुंटा ने CIA के निर्देश पर प्रजातांत्रिक तरीक़े से चुने गये एक उदार वामपंथी राजनेता को मौत के घाट उतार कर सारी दुनिया में उस सिध्दांत को और ज्यादा हवा दे दी कि बिना खूनी क्रांति के मजदूर वर्ग की सत्ता (जनवादी क्रांति) स्थापित कर पाना असंभव है।

भारत में इस विचार को ह्दयंगम कर चुके स्वाधीनता-संग्राम सेनानियों की अग्रिम कतार में अनेक नाम उल्लेखनीय हैं। भले ही कांग्रेस के नेतृत्व में भारतीय क्रांतिकारियों ने अपनी भूमिका सहज रूप से अहिंसावादी दृष्टीकोण से ही प्रारंभ की थी किन्तु समकालीन बोल्शेविक (1917) क्रांति तथा ब्रिटिश उपनिवेशवादी, बर्बर शासकों द्वारा भारत के मज़दूर वर्ग पर विभिन्न दमनात्मक कार्यवाहियों के हथकंडे अपनाये- ट्रेड डिस्प्यूट, रौलेट एक्ट बिल, नमक कानून, जलियांवाला बाग हत्याकांड, तिलक को देश-निर्वासन (माण्डले जेल) बिहार, गुजरात, बंगाल तथा पश्चिम उ.प्र. किसान आंदोलनों पर बर्बर दमनात्मक कार्यवाहियों तथा लाला लाजपतराय पर बर्बर जानलेवा लाठीचार्ज इत्यादि घटनाओं के परिणामस्वरूप सामूहिक चेतना के स्तर पर भारत में साम्यवादी दर्शन की पैठ होती चली गई। स्वाधीनता संग्राम के दौरान भारत में विगत शताब्दी (बीसवीं) के दूसरे-तीसरे दशक के दरम्यान विभिन्न क्रांतिकारियों की सोच में उल्लेखनीय बदलाव आया। अपनी राजनीतिक संघर्ष-यात्रा को अहिंसा-समता—स्वाधीनता के साथ-साथ सर्वहारा वर्ग के हरावल दस्तों के निर्माण की अहम ज़िम्मेदारी का निर्वाह करने वाले ध्वजवाहकों में अनेक हस्तियो का अभ्युदय हुआ।

एक ओर मानवेन्द्रनाथ राय, रजनी पाम दत्त, शचीन्द्र सान्याल, वारीन्द्र घोष, यतीन्द्रनाथ इत्यादि उच्च शिक्षित क्रांतिकारियों पर ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी, लेबर पार्टी तथा वहां की प्रजातांत्रिक राजसत्ता का प्रभाव परिलक्षित हुआ। दूरसी ओर तिलक, लाजपतराय, अरविंद, बटुकेश्वर दत्त, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, नेताजी सुभाष, अशफाकउल्लाह, ए.के. गोपालन, बी.टी. रणदीवे, ई.एम.एस. नम्बूदरीपाद तथा ज्योति बसु इत्यादि दर्जनों क्रांतिकारी ऐसे थे जो लेनिन के नेतृत्व में संपन्न महान सोवियत क्रांति (अक्टूबर क्रांति) से प्रभावित थे। आजादी के पूर्व स्वाधीनता आंदोलनों में इन क्रांतिकारियों ने भावी भारत का रूप-आकार परिकल्पित करते हुए लगातार भारत तथा शेष विश्व की सर्वहारा क्रांतियों के संपादन में हिंसा बनाम अहिंसा पर निरन्तर मंथन और प्रयोग करते रहे। नेताजी सुभाष के आजाद हिंद फौज में चले जाने से पूर्व भगत सिंह और चन्द्र शेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी भी शहीदों के साथ ही समाप्त हो गई थी; किन्तु देश के गरीब मजदूरों-किसानों को एकजुट करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, बावजूद इसके कि उसके सदस्यों को घोर यातना सहनी पड़ी लगातार नये-नये ब्रिटिश रिटर्न नौजवानों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रही। कतिपय क्रांतिकारी कांग्रेस में रहते हुए भी मार्क्सवाद-लेनिनवाद + सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयतावाद के सिध्दांतों पर अपना विश्वास दृढ़ करते चले गये।

ब्रिटिश साम्राज्य की लाठी-गोली, लूट-खसोट से पीड़ित भारती निर्धन जनता खून के घूंट पीती रही; उधर उपनिवेशी रणनीतिकार भारतीय जनमानस को तार-तार करते चले गये। कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिन्दु महासभा तथा जातीवादी-व्यक्तिवादी नेताओं के झांसे में आकर भारतीय एकता खंडित होती चली गयी। ऐसे विपरीत हालात में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (संयुक्त) के कुछ नौजवान कॉमरेडों ने बेहद बुध्दिमत्ता, त्याग, बलिदान तथा राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए न केवल स्वाधीनता-संग्राम में कांग्रेस को समर्थन दिया अपितु सर्वहारा की-आम जनता की आर्थिक दयनीयता पर सर्वत्र संघर्ष जारी रखते हुए उन्हें पृथकता वादियों के चंगुल में फंसने से भी रोका। भारतीय चेतना को अंहिसा की बुनियाद पर टिके रहने का रहस्य समझते हुए जिन क्रांतिकारियों ने भारत में लाल परचम फहराया उनमें कॉं ज्योति बसु का नाम सदा अग्रिम कतार में रहेगा।

सन् 1964 में संयुक्त भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के उपरान्त प. बंगाल, केरल, त्रिपुरा तथा आंध्र इत्यादि की यूनिटों ने बहुमत के साथ CPI (M) को संबंधित करते हुए भारतीय साम्यवादी संघर्ष यात्रा को आगे बढ़ाया। उन्होंने संशोधनवाद पर अंकुश लगाने का ऐलान किया। कांग्रेस ने आजादी के लक्ष्य को जब सीमित करने का प्रयास किया और केरल की ई.एम.एस. सरकार बरखास्त की (दुनिया की पहली प्रजातांत्रिक तौर-तरीक़े से चुनी गई मार्क्सवादी सरकार) तो CPI (M) ने जोरदार टक्कर दी और अहिंसा की राह नहीं छोड़ी। उधर बंगाल में कांग्रेस सिध्दार्थ शंकर रे की सरकार द्वारा किये गये नरसंहार से भी बंगाल के कॉमरेडों ने हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया।

कॉ. ज्योति बसु ने भारतीय जन-गण और खास तौर से बंगाल की मेहनतकश जनता को वास्तविक आजादी से अवगत कराया। 1940 से ही वे परिपक्व कम्युनिस्ट विचारक के तौर पर विख्यात हो चुके थे। उन्होंने नैतिक मूल्यों को सम्मान दिलाते हुए, पूंजीवादी प्रजातंत्र के अन्तर्गत ही एक राज्य विशष में कम्युनिस्ट पार्टी की अनवरत 23 साल तक सरकार चला कर विश्व कीर्ति मान स्थापित किया। उनके नेतृत्व में पश्चिम बंगाल सरकार ने वहां जो जो कार्य किये हैं उसकी जानकारी सभा को है फिर भी कुछ काम ऐसे हैं कि सारे देश और सारी दुनिया में प्रसिध्द है। पश्चिम बंगाल, केरल तथा त्रिपुरा की मार्क्सवादी सरकारों ने न केवल उन प्रांतों अपितु सारे देश की मेहनतकश जनता के हितों की अलमबरदार रहीं हैं। अत: कॉ. ज्योति बसु भी अकेले पं. बंगाल के ही नहीं वरन सारे देश के मेहनतकशों के नेता भी थे। ऑपरेशन वर्गा, भूमिसुधार, कुटीर उद्योग, श्रम कानूनों को श्रमिकों के पक्ष में बनाना, हल्दिया पेट्रो-केमिकल्स इत्यादि पर अच्छा खासा शोध-ग्रंथ प्रकाशित किया जा सकता है। वर्तमान में नरेगा, किसानों की समस्याओं, साक्षरता, महिलाओं कि स्थिति तथा दलित और पिछड़े वर्ग के उत्थान, पंचायतों का सशक्तिकरण आदि ज्योति बसु के विचारो में शामिल रहे हैं। भले ही ये तमाम मुद्दे वामपंथ ने उठाये और UPA ने इनका जमकर इस्तेमाल कर पुन: सत्ता हासिल की।

केन्द्र की पूंजीवादी-सांमती सरकारों ने सदैव पश्चिम बंगाल की ज्योति बसु सरकार पर कुदृष्टीपात किया फिर भी वे आम जनता में प्रत्येक पांच वर्ष बाद जनादेश लेकर 30 वर्ष तक अनवरत नेतृत्व प्रदान करते रहे। भले ही 2002 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने मुख्यमंत्री पद त्यागा हो किन्तु पार्टी ने उन्हें महासचिव से कम कभी नहीं आंका जबकि कॉ ज्योति बसु हमेशा विनम्र, आम कार्यकर्ता की तरह बिना ताम-झाम-लाव-लश्कर के ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के सिध्दांत को चरितार्थ करते हुए लगभग शतायु को प्राप्त हुए। देश के केन्द्रीय कर्मचारी, राज्य सरकारों के मज़दूर कर्मचारी, सार्वजनिक उपक्रमों के तमाम संगठित-असंगठित क्षैत्र के कर्मचारी विशेष तौर पर ज्योति बसु के शुक्रगुज़ार हैं। क्योंकि भारत में ‘बोनस’ शब्द को सर्वप्रथम वामपंथ ने ही परिभाषित किया था। कॉं. ज्योति बसुजब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने तो पहली ही पारी में जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने तो पहली ही पारी में ‘दुर्गा-पूजा’ के अवसर पर 1977 में प. बंगाल के तमाम मजदूर कर्मचारियों को बोनस प्रदान किया गया। तदुपरान्त तत्कालीन केन्द्र सरकार चूंकि वामपंथ समर्थित थी और चौधरी चरणसिंह ने ज्योति बसु के आग्रह पर न केवल रेल्वे, P&T अपितु तमाम केन्द्रीय कर्मचारियों को भी बोनस का ऐलान कर दिया। वो जीवनपर्यन्त सीटू से जुड़े रहे तथा उसके उपाध्यक्ष रहे, परिणाम स्वरूप तमाम सार्वजनिक उपक्रमों, राज्य सरकारों, अर्ध-सरकारी तथा निजी क्षेत्र को भी अपने-अपने मजदूर-कर्मचारियों को बोनस देना पड़ा।

इसी तरह देश में जब-जब पूंजीवादी सामंती सरकारों या पूंजीपतियों द्वारा मजदूर विरोधी कानून लाये गये या दमन-शोषण किया गया तो ज्योति बसु द्वारा समर्थित वामपंथ ने हर समय देश के मेहनतकशों का साथ दिया। चूंकि मी़डिया पर पूंजीपतियों ने सदैव कब्जा बरकरार रखा अत: कॉ. ज्योति बसु की तमाम उपलब्धियों को आम जनता तक नहीं पहुंचने दिया गया। हालांकि यह सच है कि सर्वहारा की संगठित पार्टी के समर्थन बिना ज्योति बसु अकेले दम पर इतना कुछ शायद नहीं कर पाते।

8 जुलाई 1914 को बंगाल (भारत) में जन्में तथा ब्रिटेन में सुशिक्षित ज्योति बसु भारत के प्रधानमंत्री बनने के उपयुक्त थे। कतिपय अवसर आये जब उन्हें देश की बागडोर सौंपने की ज़रूरत महसूस की गई किन्तु पार्टी (CPI (M)) के निर्णय को शिरोधार्य करने वाले महानतम क्रांतिकारी चरित्र की प्रेऱणा के द्योतक कॉ. ज्योति बसु ने अनुशासन का पालन किया।

कॉमरेड ज्योति बसु के प्रभाव से हिंसक विचारधारा वाले नक्सलवादियों ने बंदूकें फेंक दी थी ....उन्होने पूंजीवादियों, सम्प्रदायवादियों अपितु अति उग्र कम्युनिस्टों के सामने वैचारिक संघ का सदैव स्वागत किया... उनकी सज्जनता, सहिष्णुता, विनम्रता, क्रांतिकारी विचारशीलता के परिणाम स्वऱूप वे दुनिया में अजातशत्रु बन गये थे....वे कॉमरेड सुरजीत, कॉमरेड सुन्दरैया तथा EMS के समकक्ष तो थे ही ..पंडित नेहरू, इंदिरा जी ,राजीव गांधी तथा कांग्रेस के अनेक दिग्गजों के स्नेह भाजन थे ...सारी दुनिया के हर देश का कम्युनिस्ट उन्हें जानता मानता था....वे बांग्ला देश और दक्षिण एशिया में भी बखूबी जाने जाते थे..जो तत्व आज सिर उठाकर पश्चिम बंगाल को, वामपंथ को तथा देश की मेहनतकश जनता को कुचल डालने को लालायित हैं ....वे कलतक कॉमरेड बसु की अहिंसक सिंह गर्जना से भयभीत होकर शैतान की मांद में शरणागत हुआ करते थे .एक जातिविहीन, वर्गविहीन शोषणविहीन समाजवादी समाज व नूतन समृध्द भारत के
निर्माण का निरन्तर सपना देखने वाले कॉमरेड ज्योति बसु को आने वाली पीढियां सदैव सम्मान से उनके विचार ,सिध्दांत तथा आदर्शों को जानेगी मानेगी...स्मरण करें कि महात्मा गांधी ,स्वामी विवेकानन्द, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष बोस , मार्क्स और लेनिन को किसी एक शख्सियत में देखना हो तो उसका नाम है कॉमरेड ज्योति बसु।

कॉमरेड ज्योति बसु अमर रहें
कॉमरेड ज्योति बसु के विचार अमर रहें
कॉमरेड ज्योति बसु के सपने –मेहनशकश जनता के अपने
इंकलाब जिंदाबाद कॉमरेड ज्योति बसु को लाल सलाम

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