मंगलवार, 12 जुलाई 2011

चेत  गावें चेतुए वैशाख गावें  वानियाँ ,
जेठ गावें रोहिणी  अग्नि बरसावे  है!
भवन सुलभ जिन्हें शीतल वातानुकूल,
वृषको तरणि तेज उन्हें ना सतावे है!!
नंगे पैर धरती   पे भूंखा प्यासा मज़दूर,
पसीना बहाए थोरी   छाँव को ललावे है!
अंधड़  चलत इत झोपड़ी उड़त जात,
बंगले से धुन उत डिस्को की आवे है!!

बुआई की वेरियाँ में देर करे मानसून,
निर्धन किसान मन भय उपजावे है!
बंगाल की खाड़ी से ना आगें बढे इंद्रदेव,
वानियाँ बक्काल दाम दुगने बढ़ावे है!!
वक्त पर बरस जाएँ  आषाढ़ के बद्ररा,
तो दादुरों की धुन पे  धरणीहरषावे है!!
                              Shriram Tiwari

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