इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022
खुशबू,हवा,शजर खामोश.
कौन होता है भला,
इस कदर खामोश.
दिन में सूरज भी कुछ नही कहता,
रातमें चाँद भी खामोश.
न जाने किसकी नजर लगी है,
हम इधर खामोश,
वो उधर खामोश.
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