इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
सोमवार, 2 मार्च 2015
बैरी बदरवा रूठे रहे अबके बरस सखी सावन में।
खड़ी फसल बर्बाद करने को अब बरस रहे फागुन में।।
श्रीराम तिवारी
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