मंगलवार, 29 जनवरी 2013

दो कौड़ी के आदमी को हीरो बनाने से बाज़ आओ ....

   हिंदी के महानतम कवि अब्दुल रहीम खान-ए -खाना लिख गए है:-

   जो रहीम ओउछो बढे,तो अति ही इतराय।
   प्यादे से फर्जी भयो,टेड़ो टेड़ो जाय।।

   इन पंक्तियों में कवि वर रहीम ने उन   ओछे [संकीर्ण मानसिकता के ] लोगों की हकीकत बयान की है   जो  किसी खास अवसर या देश-काल -परिस्थिति के कारण ऊँचा मुकाम हासिल कर लेते हैं किन्तु वे अपनी वास्तविक आंतरिक  संरचना में ऊँचे नहीं उठ पाते। जैसे की शतरंज में प्यादा कभी-कभी विपक्षी के पाले में अवसर पाकर मनमाफिक ओहदा -वजीर,हाथी ,ऊंट, घोडा बन कर इतराने लगता है। इसी तरह समाज में कुछ अयोग्य  लोग किन्ही खास परिस्थितियों के कारण  वो मुकाम पा  जाते हैं जिसके लायक वो नहीं होते और जन-साधारण ही नहीं बल्कि असाधारण योग्यता के नर-नारी भी  इन अमरवेली  रुपी   कु -पात्रों को अपना आदर्श -नायक-महानायक मान बैठते हैं उनको अपना दिल दे बैठते हैं। जिस तरह गधे के द्वारा शेर  की  खाल ओड़कर डराने की पुरातन कहानी में कुपात्र को वन्यजीव सजा देते हैं वैसी सज़ा के हकदार हमारे आज के वे नायक या हीरो क्यों नहीं हो सकते ?  जिनकी  हरकतों से भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की दुनिया भर में बेइज्जती हो  रही है। जब देश की जनता किसी पर अपना भरपूर प्यार लुटा दे , जात-मज़हब से ऊपर उठकर उसकी कला को आदर करे, तो फिर वह शख्स 'आवाम का सब कुछ लूटने के बाद'  उसी  जनता पर कौमी भेदभाव का  आरोप लगाकर क्या हासिल करना चाहता है। क्या यह सच  नहीं की  पाकिस्तानी   गृह मंत्री का यह बयान की "भारत सरकार  शाहरुख खान की जान की हिफाजत करे" का दो टूक जबाब न देकर शाहरुख खान ने भारत की धर्मनिरपेक्ष जनता को  अपमानित ही नहीं बल्कि मायूस भी किया है।   पहले तो उसने वेवजह गैर जरुरी बयानबाजी कर 'आउट-लुक' में तथाकथित मज़हबी भेदभाव का कपोलकल्पित राग छेड़ा और बाद में जब पाकिस्तान के गृह मंत्री का घटिया बेतुका बयान आया तो चुप्पी साध गया। मुझे पाकिस्तानी नेताओं  से कोई शिकायत नहीं ,वे इस तरह की गन्दी हरकतों से दुनिया में पहले से ही मशहूर है। मुझे तो शाहरुख से शिकायत है कि :-
 
इस घर को आग लग गई ,घर के चिराग से ......अपना ही माल  खोटा   हो तो  परखने वाले को क्या दोष् दें .....
 
 क्या  यह उस   कलाकार का वह रूप है जो सत्ता के शिखर से भी जुड़ने को लालायित रहता है? जिसे पदम् श्री,पदम् भूषण [गनीमत है की नहीं दिया गया] राज्य सभा   सदस्य या  किसी  सामाजिक,सांस्कृतिक सम्मान से नवाजे जाने का प्रयोजन प्रस्तावित संभव हो सकता था। जिसे देश की बड़ी राजनैतिक पार्टियां अपने से जोड़ने को उत्सुक थीं। यह एक आदमी का सवाल नहीं यह  समूचे फिल्म उद्योग की हांड़ी का सवाल  है  अनेक  और भी हो सकते हैं जिनके दिलों में देश से ,धर्मनिरपेक्षता से ,भारतीय संविधान से ,न्याय व्यवस्था से  वितृष्णा हो सकती है ,शाहरुख तो  उस अपावन हांड़ी का  एक   कंकड़ मात्र है। आधुनिक भारतीय युवा वर्ग को , फेश्बुक धारकों को,दृश्य-श्रव्य-छप्य -पाठ्य  मीडिया को  इस का संज्ञान लेना ही होगा   और देश की करोड़ों जनता को इन नापाक लोगों से बचाना होगा जो जनता  को  'नायक'  बनकर ठगते है। सिर्फ राजनैतिक नेताओं को गालियाँ  देने ,उनके पुतले जलाने या राजनीती को गंदा बताने वालों  की सोच बदलनी होगी ,    जो लोग पानी पी-पी कर  नेताओं को गरियाते हैं जो लोग राजनीतिज्ञों के कार्टून बनाते हैं ,जो लोग नेताओं के खिलाफ  घटिया कव सड़क छाप कवितायेँ और चुटकुले सुनाते हैं वे शाहरुख़ खान जैसे लोगो की करनी-कथनी पर मौन क्यों हैं? कहाँ हो अन्ना हजारे? कहाँ हो रामदेव?कहाँ हो केजरीवाल-प्रशांत,किरण ,कहाँ हो देश के समस्त धर्मनिरपेक्ष  वुद्धिजीवी -साहित्यकारों,महाशेताओ? अब सभी अनजान बन कर कहाँ जा छिपे हो? क्या देशभक्ति का ठेका सिर्फ राजनीतिज्ञों ने ले रखा है?  शाहरुख जैसों की ओछी हरकत काबिले बर्दास्त नहीं हो सकती।
                   
 यह वही ओछी मानसिकता नहीं जिसे कविवर रहीम ने सेकड़ों साल पहले बखान किया था?

   जो लोग  अपने निहित स्वार्थ  के लिए देश को भी नीचा दिखने के लिए तैयार हो जाते है।  उनको देश के युवा ,खास  तौर  से युवतियां   और  आम  जनता किस बात के लिए हीरो मानकर बलैयां ले-लेकर अपने सर पर बिठा रहे हैं?
            इस मुल्क की अवाम दुनिया में सच्ची   धर्मनिरपेक्ष तो है किन्तु   बहुत भोली भी  है।दुनिया में शायद ही कोई ऐंसा  उदाहरण  मिलेगा  की बहुसंख्यक आवाम  का  नायक  -नायिका  ,नेता  या मुख्य न्यायधीश  अल्पसंख्यक हो।क्या पाकिस्तान [ लाली वुड ]क्या अमेरिका[हाली वुड] क्या हांगकांग क्या चीन और क्या इंग्लेंड कहीं भी ये उदाहरण नहीं  मिलेगा की दर्शक या आवाम के समाज का हीरो या हीरोइन   वहाँ के बहुसंख्यक समाज का न हो। यह भारत में ही हो सकता है की जनता एक ऐसे मामूली आदमी को जो अल्प्संखयक  भले ही हो किन्तु उसे भरपूर समर्थन और प्यार देती हैएक हिन्दू लड़की उससे शादी करती है ,उसके साथ घर  बसाती है और फिर वो मामूली आदमी अपनी नकली' कला '  का खोल उतारकर दुनिया के सामने ..हेंचू .....हेंचू .....करने लगता है . उसका बगलगीर पाकिस्तान क्यों हो गया? जो एक राष्ट्र नहीं बल्कि  आतंक-माफिया-ड्रग और हथियारों के जखीरे का  दूसरा नाम है। अभी-अभी भारत के दो शहीदों की धोखे से जान लेने  वाले दुर्दांत पाकिस्तानी हैवानों   के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला  और भारत की जिस  जनता  ने तुझ पर सब कुछ लुटा दिया , तुझे प्यार दिया, तेरी  सड़ी-गली गन्दी  फिल्मों पर पैसा और समय बर्बाद किया , जिसने कभी तुझे किसी हिन्दू नायक से कम सम्मान  नहीं दिया और जिसने तुझे फर्श से अर्श  तक पहुंचा दिया तूने उनके दिलों को  ठेस पहुंचाई है।शाहरुख खान!  में  तुम्हारी जगह होता तो पाकिस्तानी गृह मंत्री  रहमान खान के घटिया बयान का जबाब यों देता:-



"मुझे इस मुल्क [भारत ] ने जो दिया वो पूरी कायनात में किसी को कभी नहीं मिला"  अपनी  फ़िक्र करो मिया  रहमान खान! तुम मेरी हिफाज़त की चिंता छोडो ,मेहरवानी इतनी करो की पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादी भेजना बंद करो  मेरे  मुल्क में। मुसलमान होने का इतना ही गरूर है तो उसे क्यों नहीं बचाया जो दुनिया में 'इस्लाम की नाक' था, पांच वक्त का नमाज़ी पक्का मुसलमान था! और आपके पाकिस्तान में ही शरण ले  रखी  थी जिसका नाम मुहम्मद-बिन-लादेन था।आपके मुल्क में जितने मुसलमान हैं उससे ज्यादा भारत में हैं और  उनकी चिंता फिकर करने वाले इस देश के हर घर में ,हर पार्टी में हर संस्था में मौजूद है। मुझे प्यार करने
  वाले  यहाँ केवल  फिल्म या राजनीती में ही नहीं बल्कि हमारे घर में  हमारे दिल में रहते है। विश्वाश न हो तो गौरी से पूँछ ली"  तुम हमारी चिंता छोडो और पकिस्तान के करोड़ों नंगे-भूंखे  अशिक्षित  बेरोजगारों  को' कसाब' बनाने से बाज़ आओ।  पाकिस्तान में तो  कोई हिन्दू [अल्प्संखयक] हीरो तो क्या चपरासी भी  नहीं बन सकता। क्या   कोई हिन्दू युवक   पाकिस्तान में किसी मुस्लिम लड़की से शादी करके   जिन्दा रह सकता है? क्या कोई गैर मुस्लिम पाकिस्तान में 'नायक' हो सकता है? नहीं!नहीं!!नहीं!!"
  
  चूँकि शाहरुख तुमने आउट लुक के मार्फ़त और गाहे-बगाहे बाज़-मर्तवा अपनी असली  औकात बताई है, दुनिया में मेरे भारत  को रुसवा किया है  इसलिए हम  तुझे  अपने दिल से बे-दखल करते हैं। देश के तमाम युवाओं और युवतियों से आह्वान करते हैं की जो वतन  के साथ बेबफाई करे फिर चाहे वो हिन्दू हो ,मुसलमान हो,ईसाई हो,सिख हो - उसे उसकी कला से  पहले  देशभक्ति से मूल्यांकित करंगे। जो मजहव के आधार पर मूल्यांकन की बात करेगा ,जात-पांत के आधार पर समाज को बांटने की बात करेगा ,जो विदेशी आक्रान्ताओं से गलबहियां डालकर भीतरघात करेगा वो देश के  युवाओं के दिल से वे दखल किया जाएगा।
                                                 कहने को तो  भारत  ने  सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक और   वैज्ञानिक  विकास   के अनेक कीर्तिमान स्थापित किये है किन्तु   आज़ादी के 65 सालों  बाद भी   जिस तरह भारत की जनता ने अपने नैतिक मूल्यों और स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को क्षति  पहुंचाई है ;अपनी  राष्ट्रीय अस्मिता को  मलिन किया है    वो दुनिया  की बदतरीन  मिसाल है।   भारत की जनता ने हर क्षेत्र में खोटे  सिक्कों  की पूजा की है,  जिस तरह पहले तो हम  राजनीति में दवंगों-लफंगों और पूंजीपतियों के दलालों को नेता बना  देते हैं , चुनाव में बारबार जिताने के बाद  अपनी और वतन की किस्मत पर रोते रहते है . यह दलों का नहीं दल-दल का देश  बन चूका  है। हर रोज एक नई  राजनैतिक पार्टी कुकुरमुत्ते की तरह उग आती है।हम भारत के जन-गण 'सर्वे भवन्तु सुखिन :" की  तरह                 आर्थिक क्षेत्र में  67  खरबपति  ,कुछ  सेकड़ा अरबपति , कुछ लाख करोडपति और कुछ करोड़ लखपति पैदा किये हैं  और  बाकी सब कंगाल। इसी तरह भारत की फ़िल्मी दुनिया में - तथाकथित 'बालीवुड' में -दो-चार महानायक ,[ महानायिकाएं]- ],एक-दो  दर्ज़न  नायक- नायिकाएं ,दो-चार गायक-गायिकाएं ,दस-बीस लेखक-निर्माता और निर्देशक  बाकी सब फटेहाल-कंगाल।
  हज़ारों वर्षों की गुलामी की मानसिकता  से छुटकारा पाने  के लिए इस देश की जनता को कुछ कठोर आत्मनुशाशनों  का अनुशीलन करना ही होगा। हमे नायक-नायिका वाद से मुक्त होकर कला फिल्मों  को बढ़ावा देना होगा।,प्रगतिशील -धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित मनोरंजन और तत्सम्बन्धी साहित्य सृजन का पथ -अनुगमन करना होगा।युवा शक्ति को यह पहचानना ही होगा की देश के करोड़ों शोषितों,वंचितों [हिन्दू-मुसलमानों-ईसाइयों-सिखों]- सभी जात-धरम -मज़हब के दीं दुखी जनों के साथ कौन खड़ा है और पाकिस्तान के हाथों कौन खेल रहा है?

   देश की जनता को शाहरुख़ खान ने जो सबक दिया है  वो देश की आवाम और युवा शक्ति को नसीहत दे   यही अनुरोध और देश भक्तिपूर्ण अभिलाषा के साथ,


         क्रांतिकारी अभिवादन सहित ... श्रीराम तिवारी








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सोमवार, 21 जनवरी 2013

क्रांति के लिए युवाओं में चेतना का आह्वान....

                 हँसी  ठिठोली मसखरी , पदोन्नति सम्पन्न।

               जय - जय-जय युवराज की, कांग्रेस     प्रशन्न।।


              अनुभव बहुत अतीत के ,  नेता रहे    बताय।

             जयपुर चिंतन शिविर में ,  भीड़  पड़ी  उमराय।।

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            दुनिया  के  सबसे  बड़े ,लोकतंत्र    की जान।

             कांग्रेस से निकल रही , लोकतंत्र की जान।।

        
           नीचे से ऊपर तलक, मनोनयन का गान।
       
             ढोंग चुनावी प्रक्रिया , न कोई विधि विधान।।


          जात-पांत के  मूलधन, धर्म कौम के सूद।

         कांग्रेस की कोख में, पहले से मौजूद।।

        
       बटते  पद   वंशानुगत, केवल सत्ता ध्येय।

      नव-सामंती  नज़र में,प्रजातंत्र है हेय ।।


  
     पूंजीवादी दलों के , चेहरे -कुलक  -कुलीन।

    रीति-नीति -नेत्रत्व सब , हैं  सामंतयुगीन।।


    उन्नत तकनीकी  क्रांति,    जिनको  रही लुभाय।

    मध्यम वर्गीय युवा   को ,ये सिस्टम न सुहाय।।

    
    युवा वर्ग अब सीखते,दर्शन-विधि-विधान।

     न केवल प्रोफेशनल, बाइबिल -वेद - कुरान।।


     जिनने ठगा है देश को,किया विपन्न अनाथ।

      अगले आम चुनाव में,   फिर जोड़ेंगे  हाथ।।

   
       पूंजीवादी चोंचले, समझ   जाएँ जो  यूथ।

        तो  दवंग  न करे सकें,कब्जा वोटिंग बूथ।।

       
      मंत्री कमीशनखोर हो , अफसर रिश्वतखोर।

      सत्ता मनमानी करे,तो जनता होगी  चोर।।


     बिन रश्वत जिस देश ,में होता नहि  निस्तार।

     निर्धन युवा के सामने,विकल्प नहीं -दो-चार।।

 
     जयपुर चिंतन शिविर में,  नेता  करे पुकार।

      इस सिस्टम को बदल दो , जिसमें लूट अपार।।


     भू स्वामी  सामंत का,धनिक वर्ग का तंत्र।

        बदलेंगे          कैसे इसे,नहीं जानते मन्त्र।।


     नई  नीति  नव तंत्र  का  ,  युवा  करें  संधान।

    खुद को बदलेंगे सभी , तो होगा देश महान।।

                           
                 श्रीराम तिवारी




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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

दुनिया की तमाम बेटियों को समर्पित।

         बेटा  बारिस है तो बेटी पारस है,

         बेटा   आनंद   है तो बेटी ख़ुशी है,
     
         बेटा    ठहाका है  तो बेटी हँसी  है,

         बेटा  वंश है तो बेटी  भी  अंश है,

          बेटा  शान है तो बेटी आन है,

          बेटा  तन है तो बेटी मन है,

          बेटा   सुर  है  तो बेटी रागनी है,

          बेटा  संस्कार है  तो बेटी संस्कृति है,

         बेटा   दवा  है तो बेटी दुआ है,

          बेटा  पुरषार्थ है तो बेटी   करुणा  है,

          बेटा  शब्द है तो बेटी अर्थ है,

         बेटा      छंद    है तो बेटी  कविता    है,

          बेटा  दीप-राग है तो बेटी मेघ मल्हार है,

           बेटा  भारत  है तो बेटी भारतीयता है,

             बेटा  आत्मा है  तो बेटी आत्मीयता है,

             बेटा  संघर्ष है तो बेटी क्रांति है,

            बेटा चन्द्रमा तो बेटी कांति  है,

            नारी-उत्पीडन कन्या-भ्रूण हत्या-

            असमानता -दुष्कर्म   जघन्य हत्या,

            बेटा  उत्तराधिकारी और बेटी पराया धन,

           जब तक समाज में रहेगा इसका चलन ,

           और  कायम रहेगी भ्रान्ति है,

           तब तक दुनिया में घोर अशांति है,

    

                                   श्रीराम तिवारी


        



       

        

बुधवार, 16 जनवरी 2013

पाकिस्तान के जंगखोरों .... होश में आओ !

 एक  खास वर्ग भारत  का   उस मुल्क   से युद्ध को  बेताब  है,

  जो    जमीन पर सीधे लेटकर नभ पर  करना  चाहता  पेशाब  है।

  जिसे  भौगोलिक- सामरिक- वैश्विक-राष्ट्रीय -समझ नहीं है,

  जो   नहीं जानते कि  मरे -मराये को मारना वीरता नहीं  है।

 उनकी सोच है कि हमला  कर देना ही समस्या का  निदान  है ,

  मानो  भारत का  दुश्मन तो  दुनिया में  केवल   पाकिस्तान   है।

   माना कि   पाकिस्तान  दुनिया में  बर्बरता की खुली किताब   है

    लेकिन  वो तो खुद ही  अपने सीने में खंजर घोंपने को बेताब  है।,


  केवल चुनी हुई लोकतान्त्रिक सरकारों को आँख दिखाना,

  पाकिस्तान की आदमखोर कौरवी सेना  के पाप छिपाना।

  अलकायदा - कट्टरपंथ  से- तालिवान से -    हाथ मिलाना ,

  अल्पसंख्यक -हिन्दू -सिख -ईसाई  -शियाओं  के  शीश कटाना।

 पाकिस्तानी  न्यायपालिका  तो  जैसे   खुद बन गई धृतराष्ट्र है,

 संसार में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से यह एक   विकृत  राष्ट्र है।


सिंधियों,पख्तूनों, मुहाजिरों,बलूचों कश्मीरियों - बंगालियों  की हत्यारी,

खुनी   दरिंदी  , वहशी, इंसानियत  की  दुश्मन - ना-पाक सेना  सारी।

 अपने ही देश की आधी अधूरी डेमोक्रेसी को कुचलने के बहाने,

पाक सेना  रचती षड्यंत्र  सीमाओं पर  निरंतर  भारत को उकसाने।

भारत की सेना , भारत के  नेता , भारत की जनता और सरकार ,

पाक- की  मेहनतकश  शांतिप्रिय आवाम  से है  दोस्ती की तलबगार।
 
शांति-मैत्री ,सत्य-अहिंसा ,प्रजातंत्र -धर्मनिरपेक्षता -गुटनिरपेक्षता,

 और   अनेकता में एकता है  भारतीय संस्कृति की मूलभूत  विशेषता।

  विश्व के सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्य भारत के ह्रदय में  विराजे हैं,

   जो इन  पर  वार  करेगा तो उसके लिए हम  भगतसिंह  और शिवाजी राजे हैं।


      श्रीराम तिवारी







   

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

उत्तर-आधुनिकयुगीन युवाओं की स्थिति पर -दोहे.

      नव-युग के   तरुणी -तरुण ,शिक्षित-सभ्य-जहीन।
      सिस्टम के   पुर्जे बने, हो गए   महज़      मशीन।।

      अधुनातन साइंस  का, भौतिक     महाप्रयाण।
      नवयुग  के नव मनुज का,  हो न सका  निर्माण।।

     उन्नत-प्रगत-प्रौद्दोगिकी,  शासक जन विद्द्वान।
     शोषित -पीड़ित दमित का,कर न सके कल्याण।।

       
     भ्रष्ट स्वार्थी तंत्र में,    जिन   के जुड़े   हैं    तार।
     उन्हें  नहीं पहचानता,युवा वर्ग लाचार।।

    क्या संस्कृति क्या सभ्यता,क्या  राष्ट्राभिमान।
    जन-संघर्षों   की तपिश ,जाने  वही  महान।।

  क्या विप्लव क्या क्रांति,क्या भारत निर्माण।
  ये  सम्भव यदि फूंक दें, युवा शक्ति में प्राण।।

   देश -समाज के हेतु ही,बने तीज त्यौहार।
   निर्धन जन  भूंखे  मरें ,महंगाई की मार।।

   भील  मनाएं भगोरिया, बेलेन्टायन  रोम।
    भारत में मदनोत्सव,प्रेम दिवस ! हरिओम।।

पूंजी के संसार में,पसर  चुका  शैतान।
चोर-मुनाफाखोर अब , बन गए सब धनवान।।

   धरती के धन धान्य का,करें दवंग उपभोग।
संसाधन सृजन करें, मेहनतकश वे लोग।।

मेहनत से क्या भागना,मेहनत तो है योग।
जो  वंदा मेहनत करे ,दूर हटें सब रोग।।

सृष्टि सकल भयातुर,जल-थल-नभ के जीव।
भय ने जग मरघट किया,दुनिया बड़ी अजीव।।

       श्रीराम तिवारी
   

      
          

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती पर आदरांजलि

 स्वामीजी आपने कहा था " हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों , आधुनिक विज्ञान युग के नियामक नियंताओ! सुनो! जब तुम यूरोपियन ,अफ्रीकन,अमेरिकन और अरेबियन -असभ्य बंदरों की भांति पेड़ों पर ,पर्वत कंदराओं में ,  काठ के मचानों पर उछल  कूंद  किया करते थे ,तब तुम्हारे पूर्वजों के समकालिक हमारे पूर्वज -भारतीय मनीषी - ऋषिगण विराट गुरुकुलों में , खेतों में ,उज्जवल धवल सरिताओं  की निर्मल  धारा के मध्य 'ब्रहमांड  का उदयगान'   किया  करते थे। वे साहित्य - कला -संगीत  ज्योतिष,व्यकरण,गणित,आयुर्वेद  मर्मग्य ,वेद  मन्त्र दृष्टा अपने दैनिदिन  स्वध्याय में   में 'सर्वे भवन्तु  सुखिन :.......अयम निज:परोवेति ........वसुधैव कुटुम्बकम .......कृण्वन्तो विश्वम आर्यम"......... का उद्घोष किया करते थे " ' हे अमेरिका यूरोप वासियों! भारत को ज्ञान की नहीं आजादी की जरुरत है ,उसे दे सको तो रोटी दो ,कपडे दो  तकनीक दो और  लौटा सको तो   उसका प्राचीन गोरव वापिस  लौटा  दो , उसकी स्वतंत्रता! ....... भारत तो परमेश्वर के अवतारों की पावन पुन्य  धरा  है".......

   यदि आज स्वामी  विवेकानंद  होते तो कुछ यौ कहते-  हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों आज जब तुम  आर्थिक मंदी की मार से पीड़ित होते हुए भी अपने-अपने राष्ट्रों की सांस्कृतिक विरासत को पूंजीवादी  प्रजातांत्रिक प्रक्रिया जनित असमानता के वावजूद क्रान्ति की ललक  से   स्वर्णिम युग  की दहलीज  पर  ले जा चुके हो, आज जब  तुम्हारे मुल्क में बिना किसी भय के माँ - बहिन-बेटी पत्नी प्रेयसी कंही भी कभी भी आ-जा सकती है  आज जब तुम्हारे मुल्कों में लैंगिक असमानता लगभग समाप्ति पर है,आज जब तुम्हारे राष्ट्रों में यौन वर्जनाओं का  पुरातन पुरुष सत्तात्मक आधार प्राय: समाप्ति की ओर है, तब मेरे भारत में -सम्पूर्ण देश में ,उसकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ,उसकी सडकों पर चलती हुई बसों में नारी  के केवल शरीर को ही नहीं अपितू उसकी आत्मा तक को बुरी तरह रौदा जा रहा है। हम भारत वासियों  ने सांस्कृतिक पतन और सामाजिक अधोगति और आर्थिक असमानता  के कीर्तिमान स्थापित कर लिए हैं। हमारे यहाँ  दुनिया के टॉप 100 में से 10  मिलियेनार्स  हैं,हमारे यहाँ दुनिया  की 50 ताकतवर महिलाओं में से 20  भारतीय हैं। हमारे यहाँ दुनिया के सबसे ज्यादा स्विस बैंक  खाता धारक हैं, हमारे यहाँ वर्षों तक महिला प्रधान मंत्री रही,हमारे यहाँ महिला राष्ट्रपति रही,हमारे यहाँ- सत्ता धारी गठबंधन की सर्वोसवा महिला , विपक्ष की   महिला नेत्री,महिला लोकसभा  अध्यक्ष, महिला सांसद,महिला विश्व  सुन्दरी,महिला उद्द्य्मी,महिला राज्यपाल,महिला मुख्यमंत्री,  महिला विदेश सचिव,महिला राजदूत,महिला इंजीनियर ,महिला डॉक्टर,महिला प्रोफ़ेसर से लेकर महिला क्लर्क,महिला नर्स महिला दाई सब कुछ है, हमारे स्वाधीनता संगाम में नारी शक्ति की आहुति और अतीत में भी अनेक कुर्वानियाँ नारियों के नाम लिखी गईं हैं। फिर भी हे दुनिया के भाइयो!बहिनों! हम भारतीय  आज  इस धरती पर सबसे ज्यादा नारी उत्पीडन के लिए कुख्यात हो चुके हैं, हमारे खाप पंचायत वाले, हमारे रिश्वतखोर,हमारे सत्ता के दलाल,हमारे भृष्ट  हुक्मरान  हमारे वोट अर्जन राजनैतिक दल , नारी को आज भी  केवल और केवल भोग्य समझते हैं, हे विश्व के महामानवो! मैं 150 साल पहले  अपनी देव भूमि,पुन्य भूमि गंगा जमुना की पावन धरती को  हिमालय की गोद में  "एक वर्ग विहीन,शोषण विहीन,लैंगिक -आर्थिक- सामाजिक -समानता  पर आधारित खुशहाल उन्नत  भारत राष्ट्र की अभिलाषा लेकर  आया था। मेरे गुरु परमहंस  रामकृष्ण की असीम अनुकम्पा से मेने सारे संसार में  इस प्राचीन राष्ट्र के खोये हुए  स्वाभिमान को जगाया था। मुझे वेहद दुःख है की मेरा 'भारत महान ' आज कन्या  भ्रूण हत्या,नारी-उत्पीडन,गेंग-रेप और महिलाओं पर अमानवीय अत्याचारों की अनुगूंज  से शर्मशार हो रहा है,मेरी  आत्मा का चीत्कार सुनने वाले शायद इस भारत भूमि पर अब   बहुत कम बचे हैं , मेरा आशीर्वाद है उनको जो मेरे पवित्र संकल्प  को पूरा करने के लिए आज भी धृढ  प्रतिज्ञ हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था ,भारतीय मीडिया ,भारतीय युवाओं को मेरा सन्देश हैं  कि   वे  बिना झुके,बिना डरे, बिना स्वार्थ -भय के  भारत में नारी के सम्मान को पुन: स्थापित करने-सामाजिक,लैंगिक,आर्थिक असमानता मिटाने  के लिए   एकजुट हों-जागृत हों,संघर्षरत हों!! 

दोहा:-
         लिंग भेद असमानता , सत्ता मत्त गयंद .
          नारी उत्पीडन लखि, व्यथित विवेकानंद ..

        संस्कृति  उत्तर आधुनिक, दिखती   है पाषाण .
         आडम्बर उन्नत किया,मन -मष्तिक   शैतान ..

       नारी-नारी सब कहें,नारी नर की खान .
      नारी से नर  प्रकट भये, विवेकानंद  सामान ..
                                                                            श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

(A)_  [01.01.2013]Com. Shriram Tiwari, a long time CHQ office bearer of BSNLEU, retired from service on 31.12.2012. Com. Tiwari has rendered remarkable service to the Union, both at Madhya Pradesh level and at the CHQ level. CHQ wishes a very happy retired life to Com. Shriram Tiwari. (News in http://www.bsnleuchq.com/ New Delhi).   

(B)_ साथी श्रीराम तिवारी सेवा निवृत्त हुए <> (News in http://www.bsnleump.com/).

शर्मिंदगी दिखाने के लिए हंगामा खड़ा करना उचित नहीं

 देश की राजधानी में  बिना परमिट के और सीसा चढ़े  चलते   वाहन  में  जिस युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और  जिसे  मर्मान्तक पीड़ा भोगते हुए अपने प्राण गंवाने पड़े,  उस की भयानक मौत  पर देश भर में जबरजस्त सामूहिक और सकारात्मक चेतना का उदय हुआ है और इस चेतना को देश के कलंक को धोने की समर्थ क्रांति के बीज भी इस सामूहिक आक्रोश में छिपे  हो सकते  हैं। इस बाबत सतत्त संघर्ष और सामजिक जागरूकता नितांत जरुरी है।  लेकिन इन    दिनों भारत में   दुष्कर्म [बलात्कार] पर ही  जरा ज्यादा ही शोरगुल हो रहा है। कोई उस लड़की का नाम पता जानना चाहता है, कोई उसे अशोक चक्र  से सम्मानित करना चाहता है, कोई इस घटना पर राजनैतिक बढ़त हासिल करना चाहता है, कोई निरुद्षेय  फकत हंगामा खड़ा कर भड़ास निकालना चाहता है।
                          एलीट क्लास  के फुरसतियों  ने , मीडिया  के 'नारी- चिंतकों' ने और राज नीति में असफल लोगों ने मान लिया है कि  अब हमें खेतों में सिचाई के लिए नहरें नहीं बनानी! अब हमे शत्रु राष्ट्रों से कोई खतरा नहीं अतएव सेना का आधुनिकीकरण क्या चीज है इस पर चर्चा नहीं करनी! किसानों की फसल में इल्लियाँ लग गई ,सिचाई के लिए  पानी नहीं,पानी है तो बिजली नहीं -इस पर मीडिया को ,दिल्ली मुंबई, इंदौर के ' सफ़ेद पाशों' को सोचने -करने की कोई जरुरत नहीं। बाज़ार में लूट मची है,सारा माल मिलावटी है और चौगुने दाम में बेच जा रहा है,दवाएं आउट  डेटेड  धडल्ले से बिक रही  हैं,फ़ूड इन्पेक्टर रिश्वत खोर  है, ड्रग इन्स्पेक्टर महा भृष्ट है,आरटीओ ,सेल टेक्स ,इनकम टेक्स ,म्युनिसिपल  दफ्तर सबके सब बेईमानी और मक्कारी से गन्दी नाली की तरह बजबजा रहे हैं , चारों ओर 'अंधेर नगरी चौपट राज है,किन्तु इस पर इन सभ्रांत लोगों को  कोई आन्दोलन  नहीं करना,  इन सब के लिए 'मुठ्ठी भर कम्युनिस्ट और 10 -20 लाख संगठित क्षेत्र के श्रमिक कर्मचारी हैं न! लगता है कि  देश के 'परजीवी' माध्यम  वर्ग की चिंता के केंद्र में खुद उसकी अनैतिक ऐय्याशी की चिंता ही हिलोर मार रही  है। उनकी चिंता  के केंद्र में 'दामिनी' पर हुए अत्याचार की बीभत्स छवि नहीं अपितु उनकी आज़ाद और स्वछंद जीवन शैली में खलल डालने  वे तत्व हैं  जो   इस  पतनशील व्यवस्था  को संचालित करते हैं। पीडिता के बहाने ही सही समाज के लगभग आधे हिस्से के रूप में वह नारी शक्ति   स्वयम भी इन घटनाओं की आंशिक जिम्मेदारी से  बच  नहीं सकती।
  जिसको सच बयान कर देने से राष्ट्रपति के पुत्र को नाहक माफ़ी मांगने पड़ी।  देश में विकाश की,रोजगार की,शिक्षा की,स्वाश्थ की ,सुशाशन की उतनी ही जरुरत है जितनी  महिला संरक्षण की। लेकिन जो हो गया ,जो होता आया है और होता रहेगा -उस पर मौसमी बुखार की तरह कुछ  रँगे - पुते चेहरे तमतमाए हुए हैं।
         दिल्ली की 'दामिनी'या  ' निर्भया ' फिर भी खुश नसीब है कि  कुछ हज़ार आँखों ने उसे भावभीनी  श्रद्धांजलि तो  दी। केवल देश  के महानगरों-मुंबई,दिल्ली, कोलकाता, चेन्नै या  हैदराबाद  में ही ये सब नहीं हो रहा, देश के    हर गाँव में ,खेत में ,खलिहान में,कारखानों में दफ्तरों   में  सदियों से यही सब होता रहा है। पहले सामंती  दौर में तो नारी केवल पुरुष की सेविका भर थी  वह हजारों  साल तक 'दासी ' की उपाधि से नवाजी जाती रही . अब आज़ादी के बाद और पूंजीवादी -बाजारीकरण के दौर में  भी वह कुछ शहरी अपवादों को छोड़कर  इस पतनशील समाज और व्यवस्था की ठोकरे खाने को मजबूर है। जो जमींदार है ,दवंग है,पूंजीपति है,सरमायेदार है वो कानून को अपनी जेब में रखता है,थानेदार उसका हुक्का भरता   है,पटवारी पानी भरता है ,नेता उसकी  चौखट  पर सिजदा करते हैं, इनके द्वारा नारी शोषण सनातन से किया जा रहा है ,किसी में दम हो तो इनके खिलाफ एक शब्द बोलकर दिखाए,शीला दिक्षित  को अपमानित करने वालों  में यदि जरा भी शर्म हया है  तो दिल्ली से मात्र 00 किलोमीटर  किसी गाँव में जाकर किसी बालात्कार पीडिता के साथ हमदर्दी दिखाकर  बताएं। अव्वल तो  खाप पंचायत वाले ही  दुष्कर्म पीडिता को  जिन्दा जमीन में   गाड़   देते हैं  दोयम यदि क़ानून ने या किसी ईमानदार हिम्मतवर ने शरण दी   तो उसका और उसके परिवार का  सत्यानाश कोई नहीं रोक  सकता।
                               इस     देश में राष्ट्रपति महिला रह चुकी है,देश की वर्तमान में  सबसे ताकतवर नेता महिला है ,देश की विपक्ष की सबसे ताकतवर नेता महिला है, देश की लोक सभा अध्यक्ष महिला है,देश के कतिपय मुख्यमंत्री महिला थी या हैं,देश में महिला डॉ है,प्रोफ़ेशर हैं,प्रोफेसनल्स है,'महिला डॉन '   महिला उद्द्य्मी हैं, महिला डाकू  हैं  ,महिला विश्व सुन्दरी  हैं ,महिला पूंजीपति ,महिला नर्तकी,महिला फिल्म स्टार,महिला पत्रकार महिला सम्पादक और महिला लेखिकाएं  तो इफरात में पाई जाती हैं,  फिर भी ये हंगामा क्यों खड़ा किया जा रहा है?  कि   सिर्फ पुरषों  को ही   नारी दुर्दशा के लिए  जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।  यदि  आज पुरुष बर्बर और नारी पीडक है तो उसकी जननी और परवरिश करने वाली  माँ , बचपन में गोद में लोरी  गाकर सुलाने वाली बहिन, जीवन भर सुख-दुःख में साथ देने वाली   अर्धांगनी  वर्तमान दौर के पुरुष वर्ग के नैतिक   पतन की जिम्मेदारी से कैसे   बच  सकती है? मनोवैज्ञानिक खोजों के परिणाम बताते हैं की मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुष या नारी जो की  अनैतिक और  अवैध कार्यों में  लिप्त पाए गए उनकी  परवरिश में घोर अवहेलना की गई  या उन्हें अपराधिक किस्म के अभिभावक मिले या अपराधियों ने उन्हें इस दलदल में  धकेला। जब स्त्री पुरुष दोनों ही न केव ल जन्म देने बल्कि संस्कारों के संवाहक हैं तो  किसी खास राजनैतिक दल या नेता को को टार्गेट करने का  ओचित्य  मेरी समझ से परे है।  जब पूरा का पूरा सिस्टम काज़ल की कोठरी है तो उज्जवल धवल शुभ्र  वस्त्र रुपी उच्च नैतिक आदर्शवादिता के साथ   कौन टिकने वाला है। जिन पुरातन प्रतीकों को आदर्श के लिए दीवार पर टांगते हैं वे भी सब के सब इन सभी मूल्यों और आदर्शों के लिए आजीवन संघर्ष करते हुएनितांत धूमिल और अनुपयोगी हो चुके हैं।
          इस    देश  ने किसी नए  विमर्श की खोज नहीं   की  है। यह सिलसिला सनातन से चला आ रहा है, यह विमर्श सार्वदेशिक और सर्वकालिक है। क्या   कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों से लेकर   बेटिकन  के तथाकथित कर्णधार वकिङ्ग्धम  पेलेश  की  कुईंस   तथा  सद्दाम  हुसेन ,अरब  के शाह और कर्नल गद्दाफी   इसी वजह से बदनाम नहीं  हुए?  किन्तु इन राष्ट्रों के  किसी भी समाज  ने कहीं भी नारी को अपावन या त्याज्य नहीं  माना। केवल हम भारत के लोग यह प्रतिज्ञा किये बैठे हैं कि  रेपिस्ट को सजा की मांग तो करेंगे लेकिन  उत्पीड़ित  नारी को सदा के लिए असम्मान का भाव लेकर जियेंगे। उससे दोयम दर्जे का व्यवहार करेंगे। इतना ही नहीं यदि कोई अफवाह उड़ा दे बदनाम करे तो नारी पर नहीं अफवाह उड़ने वाले पर यकीन कर नारी को  घर से निकाल देंगे।
 अतीत से लेकर वर्तमान काल के शहंशाहों के हरम - केवल और केवल नारी उत्पीडन और उस्सकी सामूहिक यातना के शिविर मात्र कहे जा सकते हैं। फर्क इतना सा है कि  दुनिया में केवल भारतीय समाज है जो नारी के साथ  यदि किसी के साथ  रेप हुआ है तो उस पीडिता का नाम छुपाने  का  सामंती  रिवाज  मौजूद है मानों  पीडिता का  ही  गुनाह अवर्णीय हो  और मीडिया में संसद में जिम्मेदार  परुष ही नहीं कतिपय नारियां[नेता] भी उस दुष्कर्म पीडिता का ऐंसे  शब्दों में वर्णन करते हैं की सुनकर उबकाई आने लगती है।  ,रेपिस्ट के नाम उछाले जाते हैं  मानों  वे परमवीर चक्र के लायक काम  करके  आये हों!
         यह नितांत सामन्ती मानसिकता है की नारी  देह की शुचिता ही सर्वोपरि है। एक   नारी  का सर्वांग एक    पुरुष  के सर्वांग  की  तरह ही अक्षत क्यों नहीं माना जाए?   जिस तरह एक   राह  चलती युवती के रोड एक्सीडेंट  हो जाने पर  उसे  अस्पताल में  उपचार विशेष के बाद ससम्मान घर-समाज में स्थान मिलता है ,उसे  मुँह  छिपाने  की जरुरत नहीं  पड़ती ,उसी तरह 'रेप' को भी एक शारीरिक -मानसिक आघात  क्यों नहीं माना जाना चाहिए? उत्तर है की शायद  हमारा पितृसत्तात्मक समाज फीमेल सेक्सुअलिटी पर ही नियंत्रण रखना चाहता है।   नारी का चरित्र और उसकी पावनता को महज़   सेक्सुअल  क्राइम  से नहीं जोड़ा जा   सकता। हमे अब इन वाक्यांशों को क़ानूनी   रूप से प्रतिबंधित करना होगा, यथा:-"इज्जत लुट गई"             " इज्जत -तार-तार हो गई" "  मुँह  दिखने लायक नहीं रही" "नारी अबला है" " स्त्री की आबरू ही उसका धन है"" उसकी आबरू लुट गई""वो लुट गई" "वो बर्बाद हो गई" इसके अलावा सेक्सुअल क्राइम से जुडी हर  कानूनी और पुलिसिया मशीनरी  में आमूल- चूल परिवर्तन  करना होगा। यह सब करने के लिए सामंती सोच से उबरना होगा।
                             रेप को भी महज एक शारीरिक -मानसिक दुर्घटना मानकर  जिस  नज़र  से  पुरुष पात्र को  ट्रीटमेंट  दिया जाकर ससम्मान घर समाज में स्थान मिलता है वही सलूक  नारी  पात्रो  के  साथ क्यों नहीं होना चाहिए?  बलत्कृत  महिला  को  भी यह य्ह्सास कराये जाने की जरुरत है कि  यह महज़ एक उतनी ही दुखद घटना है  जितनी की शारीरिक उत्पीडन के बरक्स उसे महसूस  हो रही है। मानसिक रूप से उसे यह चिंतनीय नहीं   है कि  'दुनिया लुट गई' "अब क्या होगा?" सरकार और समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि केवल" दामिनी ' ' निर्भया ' को ही नहीं बल्कि देश की हर  वह नारी,युवती,बालिका जो इस तरह से दुराचारियों  का शिकार हो जाया करती हैं उनको सर्व प्रथम समाज में ससम्मान सुरक्षित जीवन की गारंटी  मिलनी ही चाहिए। दुष्कर्मियों  को वो सजा  दी  जो पीडिता  तय करे या पीडिता के सपरिजन चाहें।   यह सब तभी सम्भव है   जब हम अपने पुरातन संस्कारों के उस वैचारिक  हिस्से को नष्ट कर दें जो केवल नारी से ही 'अग्नि परीक्षा' चाहता है।
                          भारत की प्रेस और मीडिया ने जन -चेतना को सही दिशा देने की कोशिश तो जरुर की है किन्तु सिर्फ 'बलात्कार' या नारी उत्पीडन पर कोहराम मचा देने से दुनिया में यह सन्देश गया  कि  भारत तो केवल बलात्कारियों  का देश रह गया  है। जनता  भी उत्तेजित होकर हर बात का ठीकरा ' सरकार' के या पुलिस के सर फोड़ने   पर उतारू रहती है। जैसे की सरकार  और पुलिस   के  पास  इसके अलावा कोई और काम नहीं है। जनता का एक हिस्सा तो  स्थाई   रूप से  कभी 'जंतर-मंतर'कभी 'राम लीला मैदान " और कभी ' राय सीना ' हिल की ओर सेंत- मेंत  में भी निकल  पड़ने को आतुर रहता है। 
  सर'कार ने भी ज नता के गुस्से  का साथ देने के बजाय जनांदोलन  से घबराकर  'दामिनी ' को सिंगापूर भेज दिया  मानो भारत के डॉ और भारतीय चिकित्सा   व्यवस्था   बिलकुल ही नाकारा हो। यदि ऐंसा  है भी तो यह राष्ट्रीय स्वभिमान का प्रश्न है और नैतिक रूप  से  देश को जो दुनिया में जग हंसाई झेलनी पड़ी उसकी जिम्मेदारी भी तय  होनी चाहिए।
                                                                    भारत में जो ये सब[बलात्कार-सामूहिक रेप] हो रहा है वो सब  सारी  दुनिया में  भी कमोवेश  हो रहा है , में सिर्फ इसीलिये इन नापाक घटनाओं को स्वीकार्य नहीं बना रहा  की चलो हम्माम और भी नंगे हैं। लेकिन  शायद इन घटनाओं पर  भारत में  जरा  ज्यादा ही शोर  हो रहा   है ! यह सब नहीं हो ऐंसी  सद्कामना  हर वह स्त्री पुरुष जरुर करता है जो किसी का भाई है,किसी की बहिन है,किसी का बाप और किसी की  माँ  है। सरकार और  राजनीतिक पार्टियां भी बेहतरीन नेताओं के नेत्रत्व में काम कर रही हैं और वे भी देश की समाज की चिंता करते हैं।  लेकिन उन्हें संसद में या प्रेस के सामने नकली आंसू बहाने से बचना चाहिए।उनके कमेंट्स  न तो देश को दिशा देने लायक होते हैं और न ही अपराधियों को डराने में मददगार होते है।  दरसल  भारत को   आज चीन की महान क्रांति से सबक लेकर न केवल नारी उत्पीडन न  केवल गेंग रेप न केवल नशाखोरी ,न केवल वेरोजगारी बल्कि राष्ट्रीय सम्मान की खातिर एक 'महान सांस्कृतिक क्रान्ति '   की दरकार है। इसके लिए युवाओं को और देश की आवाम को अपनी मानसिकता   में क्रांतिकारी बदलाव लाना होगा। खुद का भला राष्ट्र की भलाई में देखना होगा। महिला और सेक्सुअल मान्यताओं  के  वैज्ञानिक  नार्म्स स्थापित करने  होंगे। कानून को न केवल कठोर बनाना होगा।  न केवाल नारी परस्त बल्कि  वास्तविक लेंगिक समानता के आधार पर निधारित करना होगा।  
 समाज में सभी महिलायें निर्दोष और पीड़ित है तथा सभी  पुरुष बलात्कारी और नारी उत्पीड़क है ,ऐंसा मानकर 
 देश और समाज का उद्धार नहीं किया जा सकता। भारत में जबसे महिलाओं ने नेत्रत्व संभाला है महिला उत्पीडन  में तेज़ी आई है इस पर भी गौर करना होगा। समाज में आर्थिक,सामजिक असमानता को
 ख़त्म करने  के जज्वात  जब पैदा हो जायेंगे तब ये बलात्कार,गेंग रेप सब बंद हो जायेंगे। केवल केंडल मार्च ,शोक सभाएं  करने या पीडिता को   अशोक  चक्र मांगने ,शहीदों में शुमार कर उसके नाम से पुल या चौराहों   का नाम  करण  करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।  देश में बदलाव के लिए युवाओं को  चीन की क्रांति का अध्यन करना चाहिए फिर एकजुट संघर्ष से 'नए शक्तिशाली भारत का और 'नारी-पुरुष की वास्तविक बराबरी' का समतामूलक समाज स्थापित करना चाहिए।
           जब तक समाज में अशिक्षा ,वेरोजगारी,दैहिक प्रदर्शन,रिश्वत,असमानता और  व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार है तब तक वो सब यथावत चलता रहेगा जो आज के भारत में चल रहा है।   हत्या ,बालात्कार लूट,डकेती, रेप ,गेंग-रेप  सब यथावत जारी रहेंगे। इन्हें रोकने के लिए किसी सरकार को ,पुलिस को या  नेता को गाली देने की  जरुरत नहीं -समाज  की सोच को बदलना है तो अपनी सोच पहले बदलिए। यदि खुद गुड खाते हो तो दूसरों  का  गुड खाना आप कैसे बंद करे सकते हैं?    नारी उत्पीडन  के  इस  विमर्श में   देश  को और युवाओं को इस अवसर  पर जोश से नहीं होश से काम लेना चाहिए।

                        श्रीराम तिवारी।

बुधवार, 2 जनवरी 2013

कॉ. श्रीराम तिवारी 'सेवा-निवृत्ति' समारोह

   इंदौर दिनांक 31-12-2012,

                                              मेघदूत एक्सचेंज स्थित 'शाकुंतलम' सभागार  खचाखच  भरा हुआ है।  मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं-श्री गणेश चन्द्र  पाण्डेय - वरिष्ठ महाप्रबंधक दूरसंचार,  मुख्य अतिथि हैं कामरेड सुधाकर  उर्ध्वारेषे ,विशेष अतिथि हैं कामरेड अजीत केतकर ' मुख्य पात्र '  कामरेड श्रीराम तिवारी और उनकी जीवन संगनी श्रीमती उर्मिला तिवारी।   कार्यक्रम का संचालन कर रहे हैं  कामरेड ए . के  राय .
                 कार्यक्रम के प्रारंभ में बालिकाओं ने  सरस्वती वंदना की। अपने  उद्घाटन भाषण  में डॉ . रवीन्द्र पहलवान ने  श्री श्रीराम तिवारी  की नूतन काव्य रचना '60-पन्ने' की रचनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने श्रीराम तिवारी की रचनाधर्मिता के सैद्धांतिक और कला पक्ष को वैज्ञानिक भौतिकवादी  तत्व चिंतन से  प्रेरित बताते हुए जनवादी काव्यानुभूति  में  मानवीय संवेदनाओं,सरोकारों और नैसर्गिक आंनद -अनुभूति  के प्रयोजनों में  भी सफल माना। कामरेड सुधाकर  उर्ध्वारेषे  ने  - मुख्य अतिथि  के रूप में अपना संबोधन    रखते हुए श्रीराम तिवारी की   चार दशकों की- सतत  संघर्ष- यात्रा का आद्द्योपांत उल्लेख किया। उन्होंने बताया की उम्र दराज़  लोग जीवन संघर्ष में परास्त होकर 'प्रगतिशील विचारधारा ' से विमुख होकर 'अद्ध्यात्म ' में शान्ति की तलाश करने लगते हैं।  श्री तिवारी जी की विशेषता है  कि  वे अपने बाल्यकाल में ही उस '  अद्ध्यात्म ' रुपी  गाय का दुग्ध पान कर चुके थे   जिसे पाने के लिए  लोग अपना सारा जीवन खप देते हैं। अद्ध्यात्म  से ऊपर उठकर वैज्ञनिक भौतिकवाद के रथ पर आरूढ़ होकर श्रीराम तिवारी जी ने ' अधुनातन वैज्ञानिक भौतिकवाद ' के 'अरिष्ट' में भारतीय और    जागतिक  दर्शन की  उस  चिंतन धारा  का पौष्टिक चूर्ण मिलाया  है जो न केवल व्यक्ति ,   न केवल परिवार , ना केवल राष्ट्र  बल्कि  सारे  संसार  के हितों से सरोकार रखती है।श्रीराम तिवारी  को  उनके  ट्रेड यूनियन  आन्दोलनो में शिरकत और साहित्य  में   यथानुकूल दखल  दोनों विधाओं से देश को, समाज को, मेहनतकशों  को  तो लाभ हुआ ही है  किन्तु   व्यक्तिगत 'रूप  से  उनको और परोक्ष रूप से उनके परिवार को सामाजिक और  सांस्कृतिक सम्मान का हकदार भी बनाया।  उन्होंने  श्रीराम तिवारी के  सुपुत्र डॉ प्रवीण तिवारी को  अपने आप में श्रीराम   तिवारी की 'श्रेष्ठ्तम   कृति'  निरुपित किया।
                      इस अवसर पर  मौजूद  विशिष्ठ  अतिथि  AIIEA  के महासचिव कामरेड अजीत केतकर  ने कहा  कि  किसी  भी राष्ट्रीय  स्तर  के संगठन  को या ट्रेड यूनियन श्रम संगठन को चलाने के लिए  दर्जनों युवा कार्यकर्ताओं   की दरकार हुआ करती है . कोई  अच्छा लिख पढ़ सकता है,कोई बेनर झंडे माइक संभालता है, कोई अच्छा भाषण देता है ,कोई लोगो को एकत्रित करता है,कोई अच्छे जोरदार नारे लगता है, कोई  प्रशाशन और  सरकार से निगोशिएट करता है और कोई  दरी बिछाता या पोस्टर पम्प्फ्लेट  दीवारों पर चिपकाता  है और कोई इन सबका नेत्रत्व करता है . इतने सब लोग हों तो संगठन ठीक से चलाया जाता है, चूँकि श्रीराम तिवारी   ने टेलीकॉम  बिभाग में और भारत संचार निगम में स्वयम ही संगठनों की स्थापना की थी अतएव  प्रारम्भ में उन्हें ही ये सब काम करने पड़े। साथी श्रीराम तिवारी इन अर्थों में सही मायनों में एक ' क्रूसेडर '  रहे हैं वे स्वयम 'वन  मेन  आर्मी '  रहे हैं में उनके साथ 25 वर्षों से  जुड़ा  हूँ।आइन्दा  भी साथ रहूँगा।तिवारी जी गलत बात का डटकर विरोध करते हैं  चाहे कोई भी फोरम क्यों न हो।  मैं  उनके  सुधीर्घ और दुखद  जीवन की कामना  करता हूँ।   उन्हें लाल सलाम करता हूँ।
                                                    इस अवसर पर भारत संचार निगम लिमिटेड के वरिष्ठ महाप्रबंधक श्री  गणेश   चन्द्र जी  पाण्डेय ने अपनी ओर से तथा बी एस एन एल की ओर से  श्री श्रीराम तिवारी को उनके 'सेवा निवृत्ति'  पर शुभकामनाएं  व्यक्त कीं। उन्होंने तिवारी जी को बेहतर संगठक ,ओजस्वी नेता और   क्रांतिकारी  कवि -    लेखक बताया।
                           
                           इस  अवसर पर AIBSNLEA  के राष्ट्रीय नेता आर बी  बाँके  जी , NFTEBSNL  के राष्ट्रीय संगठन सचिव  सी के जोशी जी,SNEA  के जिला सचिव एस के जोशी , BSNLEU  के जिला सचिव प्रकाश शर्मा , वरिष्ठ कामरेड सुन्दरलाल जी ,उज्जेन जिला सचिव -मनोज शर्मा ,जिला अध्यक्ष प्रेम शर्मा 'पथिक' लालावत,वेल्गोत्राजी, रोकड़े जी  खरगोन जिला सचिव  करण  सोलंकी ,कुंअर  पुष्पेन्द्र सिंह  चौहान,डॉ  परशुराम तिवारी ,रानी अग्रवाल ,एम् सी राज ,DGM  सांघी जी,DGM मिश्राजी, DGM  कुशवाह जी, मुख्य लेखाधिकारी  डहेरिया जी ,बी एस हाडा जी,कौशिक जी,एम् एल चौधरी जी, और संतोष शर्मा जी ने अपने भावबोधक संबोधन में श्री श्रीराम तिवारी को  क्रांतिकारी शिद्दत के साथ    सेवानिवृत्ति के शुभ अवसर पर   पर विदाई दी। इस अवसर पर सर्वश्री 





                                     नरेन्द्र चौबे,श्रीमती किरण चौबे,नंदनी,कार्तिक,रोहित,अभिमन्य्हू,  अंजना -मिलन तिवारी,अनामिका -माधव  उपाध्याय,अक्षत एवं दिनेश तिवारी विशेष रूप से मौजूद थे। व्यवस्था सर्व श्री ऐ के राय ,संतोष शर्मा, गंगम्वार ,शिखरचंद ,रानी अग्रवाल अजयसिंह तथा आर के श्रीवास्तव ने की . सूत्रधार श्री ऐ के राय  थे।