शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

सरसों के फूल सजी धरा बनी दुलहन ,

अलसी के फूल करें अगहन से बात है ।

उड़ि उड़ि झुण्ड गगन पखेरूवा अनगिन ,

मानस के हंसों की गति दिन रात है।।

बाजरा -ज्वार की गबोट खिली हरी भरी ,

रबी की फसल भी उगत चली आत है।

कहीं पै सिचाई होवै कहीं पै निराई होवै ,

साँझ ढले कहीं पै धौरी गैया रंभात है।।

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